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________________ ४१२ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, १, ७१. 1 उक्करण अंतमुत्तं । -एमजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं तिसमऊणं । एवं बादरवणप्फदिपत्तेगाणं । णवरि ओरालियसंघादणकदीए [ एगजीवं पडुच्च उक्कस्सेण ] दसवास सहस्साणि समयाहियाणि । उकाइ वा उकाइउस ओरालियसंघादणकदीए पुढवीभंगो । णवरि उक्कस्सेण तिण्णि रार्दिदियाणि तिष्णि वाससहस्साणि समयाहियाणि । ओरालिय- वेउब्वियपरिसादणकदीए वेउव्वियसंघादण-संघादणपरिसादणकदीणं एइंदियभंगो । ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंत मुहुतं तिसमयाहियं । तेजा - कम्मइय संघादण-परिसादणकदीए णत्थि अंतरं । एवं बादरते उकाइय - बादरवाउकाइयाणं । णवरि ओरालियसंघादणकदीए एगजीवं पहुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं तिसमऊणं । तेसिं पज्जत्ताणमोरालियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च जहणेण एगसमओ, उक्कस्पेण चदुवीसमुहुत्ता | एंगेजीवं पडुच्च जहण्णेण अतो मुहुत्त तिसमऊणं । उक्कस्सेण बादर और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है। एक जीवकी अपेक्षा वह जघन्यसे तीन समय कम अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है। इसी प्रकार बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंके कहना चाहिये । विशेष इतना है कि उनमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर [एक जीवकी अपेक्षा उत्कर्षसे] एक समय अधिक दस हजार वर्ष प्रमाण होता है । तेजकायिक और वायुकायिक जीवोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा पृथिवीकायिकोंके समान है। विशेष इतना है कि एक जीवकी अपेक्षा उत्कर्षसे क्रमशः एक समय अधिक तीन रात्रि-दिन व एक समय अधिक तीन हजार वर्ष प्रमाण होता है । औदारिक व वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति तथा वैक्रियिकशरीरकी संघातन य संघातन परिशातनकृति के अन्तरकी प्ररूपणा एकेन्द्रियोंके समान है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से तीन समय अधिक अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है । तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका अन्तर नहीं होता । इसी प्रकार बादर तेजकायिक और बादर वायुकायिक जीवोंके कहना चाहिये । विशेष इतना है कि उनमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहण काल प्रमाण होता है । उनके पर्याप्तों में औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय व उत्कर्ष से चौबीस मुहूर्त होता है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य से तीन समय कम अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है । उत्कृष्ट अन्तर की प्ररूपणा बादर तेजकायिक व बादर वायुकायिकोंके 9 १ अ-आप्रत्योः '-मुहुत्ता । तेउवाऊणमंतोमुहुत्तं एग', काप्रतौ ' मुहुत्ता । तेऊणं वाऊणमंतोमुहुचं एगइति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only wwww.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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