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________________ ४, १, ७१.j कदिअणियोगद्दारे करणकदिपरूवणा [४०१ परिसादणकदीणं मणजोगिभंगो । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीव पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि । ___ भवसिद्धियाणं ओघं । अभवसिद्धियाणं असंजदभंगो । णवरि तेजा-कम्मइयसंघादणपरिसादणकदी अणादि-अपज्जवसिदा । सम्माइट्ठीणमोहिभंगो। णवरि तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी ओपं । एवं खइयसम्माइट्ठीणं । णवरि तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी तेत्तीससागरोवमाणि सादिरेयाणि । वेदगसम्माइट्ठीणं ओहिभंगो। णवरि ओरालियसंघादण-परिसादणकदी तिण्णि पलिदोवमाणि देसूणाणि । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी छावहिसागरोवमाणि । उवसमसम्माइट्ठीसु ओरालिय-वेउब्बियपरिसादण-संघादणपरिसादणकदी णाणाजीवं पड्डुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । वेउब्वियसंघादणकदीए विभंगणाणिभंगो । णवरि समान है । तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे कुछ अधिक तेतीस सागरोपम काल है। भव्यसिद्धिक जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है । अभव्यसिद्धिक जीवोंकी प्ररूपणा समान है । विशेष इतना है कि तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति अनादि-अपर्यवसित है । सम्यग्दृष्टि जीवोंकी प्ररूपणा अवधिज्ञानियोंके समान है । विशेष इतना है कि इनमें तैजस व कार्मणशरीरकी परिशातनकृतिकी प्ररूपणा ओघके समान है । इसी प्रकार क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंके भी कहना चाहिये। विशेष इतना है कि इनमें तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका कुछ अधिक तेतीस सागरोपम काल है। वेदकसम्यग्दृष्टियोंकी प्ररूपणा अवधिज्ञानियोंके समान है । विशेष इतना है कि इनमें औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका कुछ कम तीन पल्योपम काल है । तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन परिशातनकृतिका छयासठ सागरोपम काल है। उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें औदारिक और वैक्रियिकशरीरकी परिशातन व संघातनपरिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल है। वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिकी प्ररूपणा विभंगज्ञानियोंके समान १ प्रतिषु ' तेउ० ' इति पाठः । क. क. ५१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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