SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०.] छक्खंडागमे वेषणाखंड [१, १, ५१. तेउ-पम्मलेस्सिएसु ओरालिय-आहारसंघादणकदीए ओहिभंगो। ओरालिय-वेउन्वियपरिसादणकदीए ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए किण्णभंगो । वेउब्वियसंघादणकदी ओघ । वेउब्वियसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण बे-अट्ठारससागरोवमाणि सादिरेयाणि । आहारपरिसादण-संघादणपरिसादणकदीणं मणजोगिभंगो। तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण बे-अट्ठारससागरोवमाणि सादिरेयाणि । सुक्कलेस्सिएसु ओरालिय-आहारसंघादणकदीए ओहिभंगो । ओरालिय-वेउव्वियपरिसादणकदी ओघं । ओरालियसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पुवकोडी देसूणा । वेउब्वियसंघादणकदी ओघं । वेउव्वियसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहपणेण एगसमओ, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि समऊणाणि । आहारपरिसादण-संपादण तेज व पद्म लेश्यावालोंमें औदारिक और आहारकशरीर सम्बन्धी संघातनकृतिकी प्ररूपणा अवधिज्ञानियों के समान है। औदारिक व वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति तथा औदारिक शरीरकी संघातन-परिशातनकृतिकी प्ररूपणा कृष्णलेश्यावाले जीवोंके मान है। वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिकी प्ररूपणा ओघके समान है। वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यले एक समय और उत्कर्षले क्रमशः कुछ अधिक दो और कुछ अधिक अठारह सागरोपम काल है । आहारकशरीरकी परिशातन व संघातन-परिशातनकृतिकी प्ररूपणा मनयोगियोंके समान है । तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे कुछ अधिक दो और कुछ अधिक अठारह सागरोपम प्रमाण है। शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें औदारिक और आहारकशरीरकी संघातनकृतिकी प्ररूपणा अवधिज्ञानियोंके समान है। औदारिक और वैक्रियिकशरीरको परिशातनकृतिकी प्ररूपणा ओघके समान है । औदारिकशरीरको संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा अघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे कुछ कम एक पूर्वकोटि काल है। वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिकी प्ररूपणा ओघके समान है। वैक्रियिकशरीरकी संघातन परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे एक समय कम तेतीस सागरोपम काल है। आहारकशरीरकी परिशातन व संघातन-परिशातनकृतिकी प्ररूपणा मनयोगियों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy