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________________ १०२] छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, १, ७१. एगजीवस्स उक्कस्सेण बेसमया। तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीव पदुग्ध जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । एवं सम्मामिच्छाइट्ठीणं । णवरि वेउब्वियसंघादणस्स एगजीवं पहुच्च जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। सासणसम्माइट्ठीसु ओरालियसंघादणकदीए पंचिंदियभंगो । ओरालिय-वेउन्धियपरिसादणकदीए उवसमसम्माइट्ठिभंगो । ओरालिय-वेउव्विय-तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण छावलियाओ। मिच्छाइट्ठीणमसंजदभंगो। सण्णीणं पुरिसवेदभंगो । असण्णीसु ओरालियपरिसादणकदी वेउब्धियतिण्णिपदा तेजाकम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए तिरिक्खभंगो। आहाराणुवादेण आहारी ओघ । णवरि तेजा-कम्मइयपरिसादणं णत्थि । संपादण है। विशेष इतना है कि एक जीवको अपेक्षा उसका उत्कृष्ट काल दो समय है। तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवों की अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके कहना चाहिये। विशेष इतना है कि वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य व उत्कर्षसे एक समय काल है। सासादनसम्यग्दृष्टियोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिको प्ररूपणा पंचेन्द्रियोंके समान है। औदारिक और वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृतिकी प्ररूपणा उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके समान है। औदारिक, वैक्रियिक, तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे पल्योपमका असंख्यातवां भाग काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे छह आवलि काल है। मिथ्यादृष्टियोंकी प्ररूपणा असंयतोंके समान है। संक्षी जीवोंकी प्ररूपणा पुरुषवेदियोंके समान है। असंही जीवों में औदारिकशरीरकी परिशातनकृति, वैक्रियिकशरीरके तीनों पद तथा तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिकी प्ररूपणा तिर्यंचोंके समान है। आहारमार्गणानुसार आहारी जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। विशेष इतना है कि उनमें तैजस व कार्मणशरीरकी परिशासनकृति नहीं होती। इन दोनों शरीरोंकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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