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१, १, ६६.]
कदिअणियोगद्दारे दवपरूवणाणुगमो
[२८१ पोसणाणुगमो कालाणुगमा अंतराणुगमो भावाणुगमो अप्पाबहुगाणुगमो चेदि अट्ठ अणिओगद्दाराणि हवंति । तत्थ संतपरूवणदाए अस्थि णिरयगदीए णेरइया कदि-णोकदि-अवत्तव्वसंचिदा । एवं सव्वणिरय-सव्वतिरिक्ख-सव्वदेव-मणुसअपज्जत्तवदिरित्तसव्वमणुस-एइंदियसव्वविगलिंदिय-सव्वपंचिंदिय-बादरपुढविकाइय-बादरआउकाइय-बादरतेउकाइय-बादरवाउकाइय-वादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्त-सव्वतस-पंचमणजोगि-पंचवचिजोगि-कायजोगिवेउव्वियकायजोगि-तिण्णिवेद-अवगदवेद-अकसाय-अट्ठणाण-सुहुमसांपराइयवदिरित्तसव्वसंजमचक्खुदंसणि-ओहिदंसणि-केवलदंसणि-तेउ-पम्म-सुक्कलेस्सा-सम्मादिहि-खइयसम्मादिहि-वेदगसम्मादिट्ठि-मिच्छादिहि-सण्णि-असण्णीणं वत्तव्वं, एदेसु सांतरुवक्कमणदंसणादो। आहारदुग-वेउब्वियमिस्स-सुहुमसांपराइय-उवसमसम्मत्त-मणुसअपज्जत्त-सासणसम्माइट्ठि-सम्मामिच्छाइट्ठी कदि-णोकदि-अवत्तव्वसंचिदा सिया अस्थि सिया णत्थि । अवसेसासु मग्गणासु अस्थि कदिसंचिदा, णोकदि-अवत्तव्वेहि एदेसु पवेसाभावादो' । एवं संतपरूवणा समत्ता ।
दव्वपरूवणाणुगमं वत्तइस्सामो-णिरयगदीए णेरइया कदिसंचिदा दव्वपमाणेण
प्रमाणानुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शानुगम, कालानुगम, अन्तरानुगम, भावानुगम और अल्पबहुत्वानुगम, ये आठ अनुयोगद्वार हैं। उनमें सत्प्ररूपणाकी अपेक्षा नरकगतिमें नारकी जीव कृति, नोकृति और अवक्तव्य संचित हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यंच, सब देव, मनुष्य अपर्याप्तोंको छोड़कर शेष सब मनुष्य, एकेन्द्रिय, सब विकलेन्द्रिय, सब पंचे. न्द्रिय, बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर तेजकायिक, बादर वायुकायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त, सब प्रस, पांच मनोयोगी, पांच वचनयोगी, काययोगी, वैक्रियिककाययोगी, तीन वेद, अपगतवेद, अकषाय, आठ ज्ञान, सूक्ष्म साम्परायिकको छोड़ सब संयम, चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी, केवलदर्शनी, तेज, पद्म व शुक्ल लेश्या, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, संझी और असंही जीवोंके कहना चाहिये, क्योंकि, इनमें सान्तर उपक्रमण देखा जाता है। आहारद्विक, वैक्रियिकमिश्र, सूक्ष्मसाम्परायिक, उपशमसम्यक्त्व, मनुष्य अपर्याप्त, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव कृति, नोकृति व अवक्तव्य संचित कथंचित् हैं और कथंचित् नहीं हैं। शेष मार्गणाओंमें कृतिसंचित हैं,क्योंकि, इनमें नोकृतिसंचित और अवक्तव्यसंचितोंके प्रवेशका अभाव है । इस प्रकार सत्प्ररूपणा समाप्त हुई।
द्रव्यप्रमाणानुगमको कहते हैं- नरकगतिमें नारकी जीव द्रव्यप्रमाणसे कृति
१ प्रतिषु ' पदेसाभावादो' इति पाठः । ..क. ३६.
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