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________________ २२८] छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, १, ४५. चउब्धिहो अवयारो होदि । तं जहा- चयणलद्धी चउबिहो णाम-ट्ठवणा-दव्व-भावचयणलद्धिभेएण । तत्थ चयणलद्धिसद्दो बज्झत्थं मोत्तूण अप्पाणम्हि वट्टमाणो णामचयणलद्धी होदि। सा एसा ति चयणलद्धीए एयत्तेण संकप्पियत्थो ट्ठवणाचयणलद्धी। दवचयणलद्धी दुविहो आगम-णोआगमचयणलद्धिभेएंण । तत्थ चयणलद्धिवत्थुपारओ अणुवजुत्तो आगमदव्वचयणलद्धी। [णोआगमदव्वचयणलद्धी ] तिविहा जाणुगसरीर-भविय-तव्वदिरित्तदव्वचयणलद्धिभेएण । जाणुगसरीर-भवियणोआगमदव्वचयणलद्धिदुगं सुगम, बहुसो उत्तत्थत्तादो। तव्वदिरित्तणोआगमदव्वचयणलद्धी चयणलद्धीए सदरयणा । भावचयणलद्धी आगम-णोआगमभावचयणलद्धिभेएण दुविहा । तत्थ चयणलद्धिवत्थुपारओ उवजुत्तो आगमभावचयणलद्धी । आगमेण विणा अत्थोवजुत्तो णोआगमभावचयणलद्धी । एदेसु णिक्खेवेसु दव्वट्ठियणयं पडुच्च णोआगमतव्वदिरित्तदव्यचयणलद्धीए अधियारो । पज्जवट्ठियणयं पडुच्च आगमभावचयणलद्धीए अहियारो । णइगमणयं पडुच्च चयणलद्धिवत्थुपारएण तिकोडिपरिणामेण जीवदव्वेण अहियारो । एवं णिक्खेव-णएहि चयणलद्धीए अवयारो परूविदो । पमाण-पमेयाणि अणुगमो चयणलद्धीए, कम्म-करणेसु अणुगमसद्दणिप्पत्तीदो । चयनलब्धिका चार प्रकार अवतार है। वह इस प्रकार है- चयनलब्धि नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव चयनलब्धिके भेइसे चार है। उनमें बाह्य अर्थको छोड़कर अपने आपमें रहनेवाला चयनलब्धि शब्द नामचयनलब्धि है। 'वह यह है' इस प्रकार चयनलब्धिके साथ अभेद रूपसे संकल्पित अर्थ स्थापनाचयनलब्धि है। द्रव्यचयनलब्धि आगमचयनलब्धि और नोआगमचयनलब्धिके भेदसे दो प्रकार है । उनमें चयनलब्धि वस्तुका पारगामी उपयोग रहित जीव आगमद्रव्यचयनलब्धि कहलाता है। निोआगमद्रव्यचयनलब्धि] ज्ञायकशरीर,भावी और तव्यतिरिक्त द्रव्यचयनलब्धिके भेदसे तीन प्रकार है। ज्ञायकशरीर जौर भाषी नोआगमद्रव्यचयनलब्धि ये दो सुगम है, क्योंकि, उनका अर्थ बहुत बार कहा जा चुका है । तद्व्यतिरिक्तनोआगमद्रव्यचयनलब्धि चयनलब्धिकी शब्दरचना है । भावचयनलब्धि आगम और नाआगम भावचयनलब्धिके भेदसे दो प्रकार है। उनमें चयनलब्धि वस्तुका पारगामी उपयोग युक्त जीव आगमभावचयनलब्धि है । आगमके विना अर्थमें उपयोग रखनेवाला जीव नोआगमभावचयनलब्धि है। इन निक्षेपोंमें द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षा करके नोआगमतव्यतिरिक्तद्रव्यचयनलब्धिका अधिकार है । पर्यायर्थिक नयकी अपेक्षा करके आगमभावचयनलब्धिका अधि: कार है। नैगमनयकी अपेक्षाकर चयनलब्धि वस्तुके पारगामी त्रिकोटिपरिणाम रूप जीव द्रव्यका अधिकार है । इस प्रकार निक्षेप और नयसे चयनलब्धिके अवतारकी प्ररूपणा की है। चयनलब्धिका अनुगम प्रमाण और प्रमेय है, क्योंकि, कर्म और करण कारकमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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