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________________ १, १, ४..] कदिणियोगद्दारे सुत्तावरण (१.५ भावदिहिवादो आगम-णोआगमभेदेण दुविहो । दिद्विवादजाणओ उवजुत्तो आगमभावदिहिवादो । आगमेण विणा केवलेोहि-मणपज्जवणाणेहि दिहिवादवुत्तत्थपरिच्छेदओ णोआगमभावदिद्विवादो। एत्थ आगमभावदिहिवादेण अहियारो । दवदिविवादं पडुच्च तव्वदिरित्तणोआगमदव्वदिहिवादेण अहियारो, दिट्टिवादहेदुसद्दाणं अक्खरट्ठवणाकलावस्स वि उवयारेण दिहिवादत्तुवलंभादो । एवं णिक्खेव-णएहि दिद्विवादस्स अवयारो कदो । दिद्विवादणाणे तदद्वे च अणुगमसहा वट्टदे । तेहि दोहि वि एत्थ अहियारो, णाण-णयाणं दोण्णमण्णाण्णाविणाभावादो। पुव्वाणुपुवीए दिट्टिवादो बारसमो, पच्छाणुपुव्वीए पढमो; जत्थ तत्थाणुपुवीए अवत्तव्यो, एक्कारसमो दसमो णवमो अट्ठमो सत्तमो छ8ो पंचमो चउत्थो तदिओ विदिओ पढमो वा त्ति णियमाभावादो । दिद्विवादो त्ति गुणणाम, दिट्ठीओ वददि त्ति सद्दणिप्पत्तीदो। दव्वट्ठियणयं पडुच्च दिद्विवादमेक्कं चेव । पदं पडुच्च दिद्विवादमेत्तियं होदि १८८६८५६००५। अत्थदो अणंतं वा होदि । वत्तव्वं स-परसमया ।(अर्थाधिकारः पंचविधः परिकर्म सूत्रं प्रथमानुयोगः पूर्वकृतं चूलिका चेति । तत्र परिकर्मणि चन्द्रप्रज्ञप्तिः सूर्यप्रज्ञप्तिः द्वीप भावदृष्टिवाद आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकार है । दृष्टिवादका जानकार उपयोग युक्त जीव आगरावष्टिवाद है। आगमके विना केवलशान, अवधिशान और मनःपर्ययशानसे दृष्टिवादमें कहे हुए पदार्थोंका जाननेवाला नोआगमभावदृष्टिवाद है। यहां आगमभावदृष्टिवादका अधिकार है। द्रव्यदृष्टिवादकी अपेक्षा तव्यतिरिक्तनोआगमद्रव्याष्टिवादका अधिकार है, क्योंकि, दृष्टिवादके हेतुभूत शब्दों और अक्षरस्थापना. कलापके भी उपचारसे दृष्टिवादपना पाया जाता है। इस प्रकार निक्षेप व नयोंसे दृष्टिवादका अवतार किया है। दृष्टिवादका ज्ञान और उसके अर्थमें अनुगम शब्द रहता है। उन दोनोंका ही यहां अधिकार है, क्योंकि, शान और शेय दोनोंके परस्परमें अविनाभाव है। दृष्टिवाद पूर्वानुपूर्वीसे बारहवां, पश्चादानुपूर्वीसे प्रथम और यत्र-तत्रानुपूर्वीसे अवक्तव्य है; क्योंकि, ग्यारहवां, दशवां, नौवां, आठवां, सातवां, छठा, पांचवां, चौथा, तीसरा, दूसरा अथवा पहिला है, इस प्रकारके नियमका यहां अभाव है। रहिवाद यह गुणनाम है, क्योंकि, दृष्टियोंको जो कहता है वह दृष्टिवाद है, इस प्रकार दृष्टिवाद शब्दकी सिद्धि है। द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षा दृष्टिवाद एक ही है। पदकी अपेक्षा करके दृष्टिवाद इतना है १०८६८५६००५। अथवा अर्थकी अपेक्षा वह अनन्त है। वक्तव्य स्वसमय और परसमय हैं। ___ अर्थाधिकार पांच प्रकार है-परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वकृत भौर चूलिका। उनमेसे परिकर्ममें चन्द्रप्राप्ति, सूर्यप्राप्ति, द्वीप-सागरप्रशप्ति, जम्बूदीपप्राप्ति और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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