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________________ छक्खंडागमे वैयणाखंड [४, १, १५. निग्रहश्च दृष्टिवादे क्रियते । एवमंगश्रुतस्य द्वादश अधिकाराः । अत्र दृष्टिवादे प्रयोजनम् , स्वकुक्षिस्थितमहाकर्मप्रकृतिप्राभृतत्वात्। संपहि दिविवादस्स अक्यारो वुच्चदे - णाम-ट्ठवणा-दव्व-भावभेएण चउबिहो द्विदिवादो । तत्थ अदिल्ला तिणि वि णिक्खेवा दव्वट्ठियणयसंभवा, अंतिमो पज्जवट्ठियणयसंभवो । एदेसु णामणिक्खेवो दिहिवादसद्दो बज्झत्थणिरवेक्खो अप्पाणम्हि वट्टमाणो । सो एसो त्ति एयत्तणेण संकप्पिओ अत्थो हवगादिहिवादो । दव्वदिट्टिवादो आगम-णोआगमदिट्टिवादभेएण दुविहो । तत्थ दिहिवादजाणओ अणुवजुत्तो भट्ठाभट्ठसंसकारो पुरिसो आगमदवदिट्टिवादो । णोआगमदव्वदिहिवादो जाणुगसरीर-भविय-तव्वदिरित्तभेएण तिविहो । आदिम सुगम, बहुसो उत्तत्थादो। णोआगमदिविवादसरूवेण परिणमंतओ जीवो णोआगमभवियदिहिवादो । दिद्विवादसुदहेदुभूददन्वाणि आहारादीणि तव्वदिरित्तणोआगमदव्वदिहिवादो। इस प्रकार अंगश्रुतके बारह अधिकार हैं। यहां दृष्टिवादसे प्रयोजन है, क्योंकि, उसकी कुक्षिमें महाकर्मप्रकृतिप्राभृत स्थित है। - अब दृष्टिवादका अवतार कहते हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भावके भेदसे दृष्टिवाद चार प्रकार है । इनमें आदिके तीनों निक्षेप द्रव्यार्थिक नयके निमित्तसे होनेवाले हैं, और अन्तिम पर्यायार्थिक नयके निमित्तसे होनेवाला है। इनमें . बाह्यार्थसे निरपेक्ष अपने आपमें प्रवर्तमान दृष्टिवाद शब्द नामदृष्टिवाद है । वह यह है दस प्रकार एक रूपसे संकल्पित पदार्थ स्थापनादृष्टियाद है। आगमष्टिवाद और नोआगमहष्टिवादके भेदसे द्रव्यदृष्टिवाद दो प्रकार है। उनमें दृष्टिवादका जानकार उपयोग रहित भ्रष्ट व अभ्रष्ट संस्कारवाला पुरुष आगमद्रव्यदृष्टिवाद है । नोआगमद्रव्यदृष्टिवाद शायकशरीर, भावि और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकार है । ज्ञायकशरीर सुगम है, क्योंकि, बहुत बार उसका अर्थ कहा जा चुका है। नोआगमदृष्टिवाद स्वरूपसे परिणमन करनेवाला जीव नोआगमभाविदृष्टिवाद है। दृष्टिवाद थुतके हेतुभूत द्रव्य आहारादिक तव्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यदृष्टिवाद है। १.खं. पु. १, पृ.१०७. द्वादशमंगं दृष्टिवाद इति । कौत्कल-कांडे विद्धि-कौशिक-हरिश्मश्रु-मायिकमस-हारीत-मुंडाश्वलायनादीनां क्रियावाददृष्टीनामशीतिशतम् , मरीचकुमार-कपिलोलक-गार्य-व्याघ्रभूति-वाद्वालि. माठर-मौद्गल्यायनादीनामक्रियावाददृष्टीना चतुरशीतिः, शकल्य-वात्कल-कुथुमि-सात्यमुदिग-नारायण-कण्ठ-माध्यंदिनमौद-पैप्पलाद-वादरायणविष्टीकृदैरिकायन-वसु-जैमिन्यादीनामज्ञानकुदृष्टीनां सप्तषष्टिः, वशिष्ठ-पाराशर जतुकीर्णबाल्मीकि-रोमर्षि-सत्यदत्त-व्यासैलापुत्रौपमन्यवन्द्रदत्तायस्थूणादीनां बैनयिकदृष्टीनां द्वात्रिंशत् एषां दृष्टिशताना त्रयाणां निषष्ठथुत्नराणां प्ररूपणं निग्रहश्च दृष्टिवादे क्रियते । त. रा. १, २०, १२. २ प्रतिषु ' प्राभूतवात् ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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