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________________ प्रष्ठ ०६ १०८ षट्वंगगमकी प्रस्तावना पंक्ति मशुद्ध २ विहाणमो विहाणमामो१० प्रकारके औषधि प्रकारके बाम!षधि २० जिसके जिसको , स्वयं परोस लेनेके परोस देनेके ५ दुहाभावादो तण्हाभावादो' १८ अत्यन्त दुखका अभाव होनेसे अत्यन्त तृष्णाका सद्भाव होनेसे ५ कम्मामावं कम्माभावं ७ भावं। अधवा भावं । णिरामिसत्तेण सगपुट्ठीए च जाणा विदभुक्खा-तिसाभावं । अधवा २१ ज्ञापक है | अथवा ज्ञापक है । भोजन रहित होनेसे और अपनी पुष्टि होनेसे जिनके भूख व प्यासका अभाव जाना जाता है । अथवा १११ १२ चन्द्र-अब्ज-मयूर चन्द्र-मयूर , २१ संयुक्त संयुक्त , २२ सिद्धप्रतिमाओंसे दीप्त सिद्धार्थ जहाँ सिद्धप्रतिमायें स्थित हैं और जो अपनी वृद्धिसे समृद्ध हैं ऐसे सिद्धार्थ २ फलिहघडिय फलिहसिलाघडिय १३ स्फटिकसे स्फटिकमणिसे . ६ ण जीवो ण ताव जीवो ५ पसंगादो । तदो प्पसंगादो । ण च दव्वस्स अभावो, तिहु वणाभावप्पसंगादो । तदो। " ११ ॥ २२ ॥ ॥ २६ ॥ [ इससे आगेके गायांकोंमें इसी प्रकार चार अंकोंकी वृद्धि कर लेना चाहिये] , १९ आवेगा । इस आवेगा । और द्रव्यका अभाव तो माना नहीं जा सकता, क्योंकि, ऐसा माननेपर त्रिभुवनके अभावका प्रसंग आवेगा । इस २२१ ९ तेरसीए उत्तरा तेरसीए रत्तीए उत्तरा, २४ दिन उत्तरा दिन रात्रिमें उत्तरा१२९ १० दिट्टिवादाणं सामाइय. दिट्टिवादाणं बारहंगाणं सामाइय २५४ ५-९ पयडी णाम ॥४५॥ पयडीणाम । तत्थ इमाणि xxx तत्थ इमाणि x x x अप्पा- अप्पाबहगं च सव्वत्थ ॥४६॥ पागं च सव्वस्थ ११२ ११४ ११८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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