SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८८ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड आदि त्रिगुणं मूलादपास्य शेषं चरन हृतलब्धम् । सैकं दलितं च पदं शेषं तु धनं विनिर्दिष्टम् ॥ २४ ॥ मिश्रधने अष्टगुणो त्रिरूपवर्गेण संयुते मूलम् । मूलोर्द्ध च पदंशे शेषं तु धनं विनिर्दिष्टम् ॥ २५ ॥ ) एदेहि दोहि सुतेहि पदमाणिय धणम्मि सोहिदे उववासदिवसा । पदमेत्ताओ पारणाओ । एवं संते छम्मासेहिंतो वड्डिमा उववासा होंति । तदो णेदं घडदि त्ति ? ण एस दोसो, घादाउआणं मुणीणं छम्मास ववासणियमन्भुवगमादो, णाघादाउआणं, तेसिमकाले है । गोम्मटसार जीवकाण्डकी टीका (पृ. १२० आदि ) में उल्लिखित करणसूत्रों के अनुसार उपवास और पारणाके दिनोंकी गणना निम्न प्रकार की जा सकती है मान लीजिये कि एक उग्रोग्र तपस्वी प्रतिपदासे प्रारम्भ कर एकोत्तर वृद्धि क्रमसे चतुर्दशी तक निम्न प्रकारसे उपवास ( उ ) व पारणा (पा) करता है १ २ उपा १ ३ ४५ उ उ पा २ [ ४, १, २२. ६७८९ उ उ उ पा ३ इसका सर्वधन या पदधन 'मुह-भूमिजोगदले पदगुणिदे पदधणं होदि ' इस सूत्र के अनुसार हुआ - {(२ + ५ ) ÷ २} x ४ = १४ पद धन या सर्वधन । १० ११ १२ १३ १४ उ उ उ उ पा ४ इसमें पदसंख्या अर्थात् कितने वार उपवास और पारणायें हुई इसकी गणना ' आदी अंते सुद्धे वहिदे रूवसंजुदे ठाणे ' इस सूत्र के अनुसार हुई— Jain Education International ( ५ -२ ) × १ + १ = ४ पद । अब धवल(कारके अनुसार धनमेंसे पदकी संख्या घटानेपर १४ - ४ = १० उववास दिवस हुए, और पदमात्र अर्थात् ४ पारणादिन । इन दो सूत्रोंसे पदको लाकर धनमेंसे कम करनेपर उपवासदिन होते हैं । पारणाएं पद प्रमाण होती हैं । १ प्रतिषु वटुमा ' इति पाठः । ? शंका- ऐसा होनेपर छह मासोंसे अधिक उपवास हो जाते हैं । इस कारण यह घटित नहीं होता ? समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, घातायुष्क मुनियोंके छह मासों के उपवासका नियम स्वीकार किया है, अघातायुष्क मुनियोंके नहीं; क्योंकि, उनका अकालमें For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy