________________
३६८ ]
छगमे बंधसामित्तविचओ
[ १,२८४.
असंजद सम्मादिट्टिय्हुडि जाव पमतसंजदा बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २८४ ॥
एदस्सत्थो बदे- अरदि सोग - असादावेदणीय-अथिर असुभाणं बंधवोच्छेदो चेव । उदयवच्छेदो जत्थि, उवरिम्हि उदयस्सुवलंभादो । अजसकित्तीए पुव्वमुदयस्स पच्छा बंघस्स वोच्छेदो, पमत्तासंजद सम्मादिट्ठीसु बंधोदयवोच्छेदुवलंभादो । असादावेदणीय-अरदि-सोगाणं खो सोदय-परोदओ, दोहि वि पयारेहि बंधुवलंभादो । अथिर-असुहाणं सोदओ चेव, धुवोदयतादो । अजसकित्तीए असंजदसम्मादिट्ठिम्हि सोदय - परोदओ । उवरि परोदओ चेव, परिषदयाभावादो । एदासिं छण्हं पयडीणं बंधा सांतरो, एगसमएण वि बंधुवरमदंसणादो ।
पच्चया सुगमा, बहुसो उत्तत्तादो' । देव मणुसगइसंजुत्तो चेव, अण्णगइबंधाभावादो । चउगइअसंजदसम्मादिट्टिणो दुगइसंजदासंजदा मणुसगइसंजदा च सामी । बंधद्धाणं बंधवोच्छिण्णट्ठाणं च सुगमं । सव्वासिं बंधो सादि- अद्भुवो, अडुवबंधित्तादो |
असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर प्रमत्तसंयत तक बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २८४ ॥
इस सूत्र का अर्थ कहते हैं -अरति, शोक, असातावेदनीय, अस्थिर और अशुभका बन्धक्युच्छेद ही है । उदयव्युच्छेद नहीं है, क्योंकि, ऊपर उनका उदय पाया जाता है । अयशकीर्तिके पूर्वमें उदयका और पश्चात् बन्धका व्युच्छेद होता है, क्योंकि, प्रमचसंयत और असंयत सम्यग्दृष्टिः गुणस्थानोंमें क्रमसे उसके बन्ध और उदयका व्युच्छेद पाया जाता है । असातावेदनीय, अरति और शोकका स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, दोनों ही प्रकारोंसे बन्ध पाया जाता है । अस्थिर और अशुभका स्वोदय ही बन्ध होता है, क्योंकि, वे ध्रुवोदयी हैं । अयशकीर्तिका असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में स्वोदय परोदय बन्ध होता है । ऊपर परोदय ही बन्ध होता है, क्योंकि, वहां प्रतिपक्ष प्रकृतिके उदयका अभाव है। इन छह प्रकृतियोंका बन्ध सान्तर होता है, क्योंकि, एक समयसे भी उनका अन्धविश्राम देखा जाता है ।
प्रत्यय सुगम हैं, क्योंकि, बहुत वार कहे जा चुके हैं। देव और मनुष्य- गतिसे संयुक्त ही बन्ध होता है, क्योंकि, यहां अन्य गतियोंके बन्धका अभाव है । चारों गतियोंके असंयत संम्यग्दाष्ट, दो गतियोंके संयतासंयत, और मनुष्यगतिके संयत्त स्वामी हैं । बन्धाध्वान और बन्धन्युच्छिन्नस्थान सुगम हैं । सब प्रकृतियोंका बन्ध सादि व अधुन होता है, क्योंकि, वे अध्रुवबन्धी हैं ।
१ प्रतिषु ' उत्थादो' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org