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________________ ३, २८६.] सम्मत्तमग्गणाए बंधसामित्तं ... अपच्चक्खाणावरणीयकोह-माण-माया-लोह-मणुस्साउ-मणुसगइ ओरालियसरीर-ओरालियसरीरअंगोवंग-वजरिसहसंघडण-मणुसाणुपुवीणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २८५॥ सुगमं । असंजदसम्मादिट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २८६ ॥ अपच्चक्खाणावरणचउक्क-मणुसगइपाओग्गाणुपुव्वीणं बंधोदया समं वोच्छिण्णा, असंजदसम्मादिविम्हि तदुहयवोच्छेदुवलंभादो । मणुसगइ-मणुसाउ-ओरालियसरीरअंगोवंगवज्जरिसहसंघडणाणं बंधवोच्छेदो चेव, उवरि पि' उदयदंसणादो। अपच्चक्खाणचउक्कस्स पंधो सोदय-परोदओ । सेसाणं परोदओ चेव, सोदएण बंधविरोहादो । दसण्णं पयडीणं बंधो णिरंतरो, एगसमएण बंधुवरमाभावादो। अपच्चक्खाणचउक्कस्स चालीस पच्चया। मणुसाउअस्स बादालीस, ओरालियदुग-वेउव्वियमिस्स-कम्मइयपच्चयाणमभावादो । सेसाणं चोदालीस, अप्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया, लोभ, मनुष्यायु, मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिकशरीरांगोपांग, वर्षभसंहनन और मनुष्यानुपूर्वी नामकर्मका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २८५॥ यह सूत्र सुगम है। असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २८६॥ अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका बन्ध व उदय दोनों साथमें व्युच्छिन्न होते हैं. क्योंकि, असंथतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उन दोनोंका व्युच्छेद पाया जाता है । मनुष्यगति, मनुष्यायु, औदारिकशरीरांगोपांग और वज्रर्षभसंहननका केवल बन्धव्युच्छेद ही है, क्योंकि, ऊपर भी उनका उदय देखा जाता है । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कका बन्ध स्वोदय-परोदय होता है । शेष प्रकृतियोंका परोदय ही बन्ध होता है, क्योंकि, स्वोदयसे इनके बन्धका विरोध है । दशों प्रकृतियोंका बन्ध निरन्तर होता है, क्योंकि, एक समयसे उनके बन्धविश्रामका अभाव है। अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके चालीस प्रत्यय हैं। मनुष्यायुके ब्यालीस प्रत्यय हैं, क्योंकि, औदारिकद्विक, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण प्रत्ययोंका अभाव है। शेष प्रकृतियोंके चवालीस प्रत्यय है, क्योंकि, उनके औदा. १ प्रतिषु ' व ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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