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________________ ३३४] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [३, २६०. मुदयादो बंधो पुव्वं पच्छा वा वोच्छिण्णो त्ति परिक्खा णत्थि, एत्थ बंधोदयवोच्छेदाभावादो । पंचणाणावरणीय-चउदंसणावरणीय-पंचिंदियजादि-तेजा-कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रस-फासअगुरुअलहुअ-तस-बादर-पज्जत्त-थिर-सुह-णिमिण-पंचंतराइयाणं सोदओ बंधो, धुवोदयत्तादो । णिद्दा पयला-सादावेदणीय-चदुसंजलण-पुरिसवेद-हस्स-रदि-भय-दुगुंछा-समचउरससंठाण-पसत्थविहायगइ-सुस्सराणं सव्वगुणट्ठाणेसु सोदय-परोदओ बंधो, अदुवोदयत्तादो । देवगइ-देवगइपाओग्गाणुपुव्वी-वेउव्वियसरीर-वेउब्वियसरीरअंगोवंगाणं बंधो परोदओ, सोदएण बंधविरोहादो । उवघाद-परघाद-उस्सास-पत्तेयसरीराणं मिच्छाइट्ठि-सासणसम्माइट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीणं सोदयपरोदओ, अपज्जत्तकाले उदयाभावादो । सेसेसु बंधो सोदओ, तेसिमपज्जत्तद्धाए अभावादो । सुभग-आदेज्ज-जसकित्तीणं मिच्छाइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्मादिष्टि तिबंधो सोदय-परोदओ। उवरि सोदओ चेव, पडिवक्खुदयाभावादो। उच्चागोदस्स मिच्छाइटिप्पहुडि जाव संजदासंजदा त्ति बंधो सोदय-परोदओ । उवरि सोदओ, पडिवक्खुदयाभावादो । . पंचणाणावरणीय-छदंसणावरणीय-चदुसंजलण-भय-दुगुंछ-देवगइ-वेउब्वियदुग-तेजा है। शेष प्रकृतियोंके उदयसे वन्ध पूर्वमें या पश्चात् ब्युच्छिन्न होता है, यह परीक्षा नहीं है, क्योंकि, यहां उनके बन्ध और उदयके व्युच्छेदका अभाव है। ___ पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, पंचेन्द्रिय जाति, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलधु, त्रस, बादर, पर्याप्त, स्थिर, शुभ, निर्माण और पांच अन्तरायका स्वोदय बन्ध होता है, क्योंकि, ये ध्रुवोदयी हैं। निद्रा, प्रचला, सातावेदनीय, चार संज्वलन, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्तविहायोगति और सुस्वरका सब गुणस्थानों में स्वोदय-परोदय वन्ध होता है, क्योंकि, वे अध्रुवोदयी हैं । देवगति, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिकशरीरांगोपांगका बन्ध परोदय होता है, क्योंकि, अपने उदयके साथ इनके बन्धका विरोध है। उपघात, परघात, उच्छ्वास और प्रत्येकशरीरका वन्ध मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टियों के स्वोदय-परोदय होता है, क्योंकि, अपर्याप्तकालमें इनके उदयका अभाव है। शेष गुणस्थानोंमें स्वोदय बन्ध होता है, क्योंकि, उनके अपर्याप्तकालका अभाव है । सुभग, आदेय और यशकीर्तिका मिथ्यादृष्टिसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक खोदय परोदय वन्ध होता है । ऊपर स्वोदय ही बन्ध होता है, क्योंकि, वहां प्रतिपक्ष प्रकृतियोंके उदयका अभाव है । उच्चगोत्रका मिथ्यादृष्टिसे लेकर संयतासंयत तक स्वोदय-परोदय बन्ध होता है । ऊपर स्वोदय ही बन्ध होता है, क्योंकि, यहां प्रतिपक्ष प्रकृतिके उदयका अभाव है। पांच ज्ञानावरणीय, छह दर्शनावरणीय, चार संज्वलन, भय, जुगुप्सा, देवगति, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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