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६, २००.]
कसायमगणार बंधसामित हस्स-रदि जाव तित्थयरे त्ति ओघं ॥ १९७ ॥ सुगममेदं, बहुसो परूविदत्थत्तादो ।
मायकसाईसु पंचणाणावरणीय-चउदंसणावरणीय-सादावेदणीयदोण्णिसंजलण-जसकित्ति-उच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १९८ ॥
सुगममेदं ।
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अणियट्टी उवसमा खवा बंधा । एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ १९९॥
एदं पि सुत्तं सुगमं । बेट्टाणि जाव माणसंजलणे ति ओघं ॥ २०॥
बेट्ठाणि-णिद्दासादेगट्ठाण-अपच्चक्खाण-पच्चक्खाण-पुरिस-कोध-माणसुत्ताणमाघपरूवणमवहारिय परूवेदव्वं ।
हास्य व रतिसे लेकर तीर्थकर तक ओघके समान प्ररूपणा है ॥ १९७ ॥ यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, इसके अर्थकी वहुत वार प्ररूपणा की जा चुकी है।
मायाकषायी जीवोंमें पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, सातावेदनीय, दो संज्वलन, यशकीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय, इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥१९८॥
यह सूत्र सुगम है।
मिथ्यादृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिकरण उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, अबन्धक कोई नहीं हैं ॥ १९९ ॥
यह भी सूत्र सुगम है। द्विस्थानिक प्रकृतियोंको लेकर संज्वलनमान तक ओघके समान प्ररूपणा है ॥२०॥
द्विस्थानिक, निद्रा, असातावेदनीय, एकस्थानिक, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान, पुरुषवेद, क्रोध और मान सूत्रोंकी ओघप्ररूपणाका निश्चय कर प्ररूपणा करना चाहिये।
१प्रतिष सादासादेग-' इति पाठः।
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