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२५०] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, १७४. एदासिमत्थ णियमेण उदयाभावादो । अवसेसाणं पुव्वं बंधो पच्छा उदओ वोच्छिण्णो, बंधे फिट्टे वि उवरिमगुणट्ठाणेसु एदासिमुदयदंसणादो ।
मिच्छत्तस्स सोदओ बंधो। णउंसयवेद-णिरयाउ-णिरयगइ-एइंदिय-बीइंदिय-तीइंदियचउरिंदियजादि णिरयाणुपुवि-आदाव-थावर-सुहुम अपज्जत-साहारणसरीरणामाणं परोदओ बंधो, इत्थिवेदोदएण सह एदासिमुदयविरोहादो। एसो एत्थ ओघादो विसेसो, तत्थ सोदय-परोदएणेदासिं बंधोवदेसादो । हुंडसंठाण-असंपत्तसेवट्टसंघडणाणं सोदय-परोदओ बंधो, इत्थिवेदोदएण सह एदासिमुदयस्स विपडिसेहाभावादो । मिच्छत्त-णिरयाउआणं णिरंतरा बंधो । अवसेसाणं सांतरो, अणियदेगसमयबंधदसणादो ।
मिच्छत्त-णQसयवेद-हुँडसंठाण-असंपत्तसेवट्टसंघडण-एइंदिय-आदाव-थावराणं तेवण्ण पच्चया, पुरिस-णqसयवेदाणमभावादो। णिरयाउ-णिस्यगइ-णिरयगइपाओग्गाणुपुवीणमेगृणवचास पच्चया, ओघपच्चएसु ओरालियामिस्स-कम्मइय वे उब्वियद्ग-पुरिस-णQसयवेदाणमभावादो। बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिंदिय जादि-सुहुम अपज्जत्त-साहारणाणं एक्कवंचास पच्चया, ओघपच्चएसु वे उब्बियद्ग-पुरिस-णqसयवेदपच्चयाणमभावादो । सेस मुगमं ।
नहीं है, क्योंकि, यहां नियम से इनके उदय का अभाव है । शेष प्रकृतियोंका पूर्व में बन्ध और पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, क्योंकि, बन्धके नष्ट होने पर भी उपरिम गुणस्थानोंमें इनका उदय देखा जाता है।
मिथ्यात्वका स्वोदय बन्ध होता है । नपुंसकवेद, नारकायु, नरकगति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति, नारकानुपूर्वो, आताप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणशरीर नामकर्म, इनका परोदय वन्ध होता है, क्योंकि, स्त्रीवेदके उदयके साथ इनके उदयका विरोध हे । यह यहां ओघले विशेषता है, क्योंकि, वहां स्वोदय-परोदयसे इनके बन्धका उपदेश है । हुण्ड संस्थान और असंप्राप्त पाटिकासंहननका स्वोदयपरोदय बन्ध होता है, क्योंकि, स्नोवेदके उदयके साथ इनका विरोध नहीं है । मिथ्यात्व और नारकायुका निरन्तर बन्ध होता है । शेष प्रकृतियोंका सान्तर बन्ध होता है, क्योंकि, उनका नियम रहित एक समय बन्ध देखा जाता है।
मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तरसपाटिकासंहनन, एकेन्द्रिय, आताप और स्थावर प्रकृतियोंके तिरेपन प्रत्यय हैं, क्योंकि, यहां पुरुषवेद और नपुंसकवेद प्रत्ययोंका अभाव है। नारकायु, नरकगति और नरकातिप्रायोग्यानुपूर्वीके उनचास प्रत्यय है,क्योकि, आवात्ययाम आदरिकाम,कामण, वाकायकाईक, पुरुषवेद आर नपुस प्रत्ययोंका अभाव है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण प्रकृतियोंके इक्यावन प्रत्यय हैं, क्योंकि, ओघप्रत्ययोंमें क्रियिकद्विक, पुरुषवेद और नपुंसकवेद प्रत्ययोंका अभाव है। शेष प्रत्ययप्ररूपणा सुगम है।
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