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________________ २४०] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [ ३, १६६. सुगमं । मिच्छाइट्टी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १६६ ॥ एत्थ पुव्वं पच्छा वा बंधो वोच्छिण्णो' त्ति विचारो णत्थि, एक्कगुणट्ठाणम्मि तदसंभवादो । मिच्छत्तस्स सोदओ बंधो, अण्णहा बंधाणुवलंभादो । णqसयवेद-चउजादि-थावरसुहुम-अपज्जत्तणामाणं बंधो सोदय-परोदओ, विग्गहगदीए उदयणियमाभावादो । हुंडसंठाणअसंपत्तसेवट्टसंघडण-आदाव-साहारणसरीरणामाणं परोदओ बंधो, विग्गहगदीए णियमेणेदासिं उदयाभावादो । मिच्छत्तस्स बंधो णिरंतरो । अवसेसाणं पयडीणं सांतरो, अणियमेण एगसमयबंधदसणादो। पच्चया सुगमा । मिच्छत्त-णqसयवेद-हुंडसंठाण-असंपत्तसेवट्टसंघडण-अपज्जत्ताणं तिरिक्ख-मणुसगइसंजुत्तो, चदुजादि-आदाव-थावर-सुहुम-साहारणाणं तिरिक्खगइसंजुत्तो बंधो, अण्णगईहि सह एदासिं बंधविरोहादो। मिच्छत्त-णqसयवेद-हुंडसंठाण-असंपत्तसेवट्टसंघडणाणं चउगइमिच्छाइट्ठी सामी, चउगइउदएण सह एदासिं बंधस्स विरोहाभावादो । एइंदिय यह सूत्र सुगम है। . मिथ्यादृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १६६ ॥ यहां उदयसे पूर्व में अथवा पीछे बन्धव्युच्छिन्न होता है, यह विचार नहीं है, क्योंकि, एक गुणस्थानमें वह सम्भव ही नहीं है । मिथ्यात्वका स्वोदय बन्ध होता है; क्योंकि, अपने उदयके विना उसका बन्ध पाया नहीं जाता। नपुंसकवेद, चार जातियां, स्थावर, सूक्ष्म और अपर्याप्त नामकर्मका बन्ध स्वोदय-परोदय होता है, क्योंकि, विग्रहगतिमें यका नियम नहीं है। हण्डसंस्थान, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन, आताप और साधारणशरीर नामकर्मका परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, विग्रहगतिमें मियमसे इनके उदयका अभाव है। मिथ्यात्वका बन्ध निरन्तर होता है। शेष प्रकृतियोंका सान्तर बन्ध होता है, क्योंकि, उनका अनियमसे एक समय बन्ध देखा जाता है। प्रत्यय सुगम हैं। मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन और अपर्याप्तका तिर्यग्गति व मनुष्यगतिसे संयुक्त तथा चार जातियां, आताप, स्थावर, सूक्ष्म और साधारणका तिर्यग्गतिसे संयुक्त बन्ध होता है, क्योंकि, अन्य गतियोंके साथ इनके बन्धका विरोध है। मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, हुण्डसंस्थान और असंप्राप्तसृपाटिकासंहननके चारों गतियोंके मिथ्यादृष्टि स्वामी हैं, क्योंकि, चारों गतियोंके उदयके साथ इनके बन्धका १ काप्रतौ ' पच्छा वा वोच्छिण्णो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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