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३, १६५. ]
जोगमग्गणाए बंधसामित्तं
[ २३९
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माहट्टी असंजदसम्माइट्ठी सजोगिकेवली बंधा । एदे बंधा अबंधा णत्थि ।। १६४ ॥
सादावेदणीयस्स बंधो उदओ वा पुव्वं वोच्छिण्णो किं पच्छा वोच्छिण्णो त्ति एत्थ परिक्खा णत्थि, तदुभयवोच्छेदाभावादो । सोदय-परोदओ बंधो अद्भुवोदयत्तादो । सजोगिकेवलिम्हि णिरंतरो बंधो, पडिवक्खपयडीए बंधाभावादो । अण्णत्थ सांतरा । पच्चया सुगमा । णवरि सजोगिकेवलिम्हि कम्मइयकाय जोगपच्चओ एक्को चेव । मिच्छाइट्ठि-सासणसम्माडितिरिक्ख मणुसगइसंजुत्तं असंजदसम्मादिट्टिणो देव - मणुसगइसंजुत्तं बंधति । सजोगिकेवली अगसंजुतं । चउगमिच्छाइट्ठि असंजदसम्मादिट्टिणो तिगइसासणसम्मादिट्ठिणो मणुसगइसजोगिकेवलिणो च सामी । बंधद्धाणं सुगमं । एत्थ बंधवोच्छेदो णत्थि । सादिअद्भुवो बंधो, परियत्तमाणबंधादो ।
मिच्छत्त-णवुंसयवेद-चउजादि- हुंड संठाण - असंपत्तसेवट्टसंघडण - आदाव थावर- सुहुम-अपज्जत्त-साहारणसरीरणामाणं को बंधो को अबंध ? || १६५ ॥
मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और सयोगकेवली बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ १६४ ॥
सातावेदनीयका बन्ध अथवा उदय पूर्वमें व्युच्छिन्न होता है या क्या पश्चात् व्युच्छिन्न होता है, इसकी यहां परीक्षा नहीं है, क्योंकि, उन दोनोंके व्युच्छेदका यहां अभाव है । स्वोदय- परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, वह अध्रुवोदयी प्रकृति है । सयोगकेवल गुणस्थान में निरन्तर बन्ध होता है, क्योंकि, वहां प्रतिपक्ष प्रकृतिके बन्धका अभाव है । अन्यत्र सान्तर बन्ध होता है । प्रत्यय सुगम हैं । विशेष इतना है कि सयोगकेवली गुणस्थान में एक ही कार्मणकाययोग प्रत्यय है । मिथ्यादृष्टि व सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यग्गति व मनुष्यगति से संयुक्त, तथा असंयतसम्यग्दृष्टि देव व मनुष्य गतिसे संयुक्त बांधते हैं । सयोगकेवली गतिसंयोग से रहित बांधते हैं । चारों गतियोंके मिथ्यादृष्टि व असंयतसम्यग्दृष्टि, तीन गतियोंके सासादनसम्यग्दृष्टि, तथा मनुष्यगतिके सयोगकेवली स्वामी हैं । बन्धाध्वान सुगम है । यहां बन्धव्युच्छेद नहीं है । सादि व अध्रुव बन्ध होता है, क्योंकि, उसका बन्ध परिवर्तनशील है ।
मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, चार जातियां, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तसृपाटिका संहनन, आताप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणशरीर नामकर्मका कौन बन्धक व कौन अबन्धक है ? ॥ १६५ ॥
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