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३, १६२.] जोगमग्गणाए बंधसामित्त
। २३७ णिहाणिदा-पयलापयला-थीणगिद्धि-अणंताणुबंधिकोध-माणमाया-लोभ-इत्थिवेद-तिरिक्खगइ-चउसंठाण-चउसंघडण-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुव्वि-उज्जोव अप्पसत्थविहायगइ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्जणीचागोदाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १६१ ॥
सुगमं ।
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १६२॥
एदस्सत्थो वुच्चदे- अणंताणुबंधिचउक्कित्थिवेदाणं बंधोदया समं वोच्छिण्णा, सासणसम्मादिविम्हि तदुभयाभावदंसणादो । एवमण्णपयडीणं जाणिय वत्तव्वं ।
थीणगिद्धितिय-चउसंठाण-चउसंघडण-उज्जोव-अप्पसत्थविहायगइ-दुस्सराणं परोदओ बंधो, विग्गहगदीए एदासिमुदयाभावादो । अणंताणुबंधिचउक्कित्थिवेद-तिरिक्खगइतिरिक्खगइपाओग्गाणुपुब्वि-दुभग-अणादेज्ज-णीचागोदाणं सोदय-परोदओ बंधो, एदासिमेत्थ
निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, स्त्रीवेद, तिर्यग्गति, चार संस्थान, चार संहनन, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीचगोत्रका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १६१ ॥
यह सूत्र सुगम है।
मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, शेष अवन्धक हैं ॥ १६२॥
इस सूत्रका अर्थ कहते हैं-अनन्तानुबन्धिचतुष्क और स्त्रीवेदका बन्ध व उदय दोनों साथमें व्युच्छिन्न होते हैं, क्योंकि, सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उन दोनोंका अभाव देखा जाता है। इसी प्रकार अन्य प्रकृतियोंका पूर्व या पश्चात् होनेवाला बन्ध व उदयका व्युच्छेद जानकर कहना चाहिये।
स्त्यानगृद्धित्रय, चार संस्थान, चार संहनन, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति और दुस्वरका परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, विग्रहगतिमें इनके उदयका अभाव है। अनन्तानुबन्धिचतुष्क, स्त्रीवेद, तिर्यग्गति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्र, इनका स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, क्योंकि, यहां इनके उदयके
१ प्रतिषु 'पंचसंघडण' इति पाठः ।
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