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३, १४३.] जोगमगणाए बंधसामित्तं
[ ३०५ चेव । एसो बेट्टाणिसुत्तट्ठियभेदो ।
एइंदिय-बीइंदिय--तीइंदिय-चउरिदिय पंचिंदियजादि-आदाव-थावर-सुहुम-साहारणाणं मणुसगईए परोदओ बंधो, एत्थ पुण सोदय-परोदओ। अपज्जत्तस्स मणुसगईए सोदय-परोदओ, एत्थ पुण परोदओ । एसो एगट्ठाणियसुत्तट्ठियभेदो ।
संपधिय अण्णसुत्तेसु भेदाभावादो ताणि मोत्तूण अट्ठट्ठाणियसुत्तट्ठियभेदो उच्चदेमिच्छादिट्ठि-सासणसम्मादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीसु उवघाद-परघाद-उस्सास-अपज्जत्ताणं मणुसगईए सोदय-परोदओ, एत्थ पुण सोदओ चेव । पंचिंदियजादि-तस-बादराणं मणुसगईए सोदओ, एत्थ पुण सोदय-परोदओ । जेणेद देसामासियमप्पणासुत्तं तेणेदे सव्वविससा एत्थुवलब्भंति । अण्णं पि भेददंसणट्टमुवरिमसुत्तं भणदि
णवीर विसेसो सादावेदणीयस्स मणजोगिभंगो ॥ १४३ ॥ ओरालियकायजोगीसु अबंधगाभावादो ।
ओरालियमिस्सकायजोगीसु पंचणाणावरणीय-छदंसणावरणीयअसादावेदणीय-बारसकसाय-पुरिसवेद-हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय
ही होता है । यह द्विस्थानिक सूत्रस्थित भेद है।
____एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जाति, आताप, स्थावर, सूक्ष्म और साधारणका मनुष्यगतिमें परोदय बन्ध होता है, परन्तु यहां स्वोदय-परोदय बन्ध होता है। अपर्याप्तका मनुष्यगतिमें स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, परन्तु यहां परोदय बन्ध होता है । यह एकस्थानिक सूत्रस्थित भेद है।
इस समय अन्य सूत्रों में भेद न होनेसे उन्हें छोड़कर अष्टस्थानिक सूत्रस्थित भेदको कहते हैं- मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानोंमें उपघात, परघात, उच्छ्वास और अपर्याप्तका मनुष्यगतिमें स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, परन्तु यहां स्वोदय ही होता है। पंचेन्द्रिय जाति, प्रस और बादरका मनुष्यगतिमें स्वोदय बन्ध होता है, परन्तु यहां स्वोदय-परोदय बन्ध होता है। चूंकि यह अपर्णासूत्र देशामर्शक है, अत एव ये सब विशेषतायें यहां पायी जाती हैं । अन्य भी भेद दिखलानके लिये उपरिम सूत्र कहते हैं
विशेषता यह है कि साता वेदनीयकी प्ररूपणा मनोयोगियोंके समान है ॥ १४३॥ क्योंकि, औदारिककाययोगियों में साता वेदनीयके अवन्धकोंका अभाव है।
औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें पांच ज्ञानावरणीय, छह दर्शनावरणीय, असाता वेदनीय, मारह कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पंचेन्द्रिय जाति, तैजस
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