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छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [ ३, १४४. दुगंछा-पंचिंदियजादि-तेजा-कम्मइयसरीर-समचउरससंठाण-चण्ण-गंधरस-फास-अगुरुअलहुअ-उवघाद-परघाद-उस्सास-पसत्थविहायगइ-तसबादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर-थिराथिर-सुहासुह-सुभग-सुस्सर-आदेज्जजसकित्ति-णिमिण-उच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥१४४॥
सुगम ।
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी बंधा। एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १४५॥
परघादुस्सास-पसत्थविहायगइ-सुस्सराणमेत्थुदयाभावादो बंधोदयाणं पुवावरकालसंबंधिवोच्छेदविचारो णत्थि । अवसेसाणं पयडीणं बंधोदया समं वोच्छिज्जंति, असंजदसम्मादिविम्हि तदुभयाभावदंसणादो ।
पंचणाणावरणीय-चउदंसणावरणीय-तेजा-कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुवलहुअ-उवधाद-थिराथिर-सुहासुह-णिमिण-पंचंतराइयाणं सोदओ बंधो, एत्थ धुवोदयत्तादो ।
व कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशकीर्ति, निर्माण, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय, इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १४४ ॥
यह सूत्र सुगम है।
मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १४५ ॥
परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति और सुस्वरका यहां उदयाभाव होनेसे बन्ध व उदयके पूर्व और अपर काल सम्बधी व्युच्छेदका विचार नहीं है। शेष प्रकृतियोंका बन्ध और उदय दोनों साथ व्युच्छिन्न होते हैं, क्योंकि, असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उन दोनोंका अभाव देखा जाता है।
पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरूलघु, उपघात, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, निर्माण और पांच अन्तराय, इनका खोदय बन्ध होता है, क्योंकि, यहां ये ध्रुवोदयी हैं । निद्रा, प्रचला, बारह कषाय,
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