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________________ २०४] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [३, १४२. सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीसु चोत्तीसपच्चयदंसणादो, उवरिमगुणट्ठाणपच्चएसु वि ओरालियकायजोगं मोत्तूण सेसजोगपच्चयाणमभावादो । उवरिपरिक्खासु वि णत्थि विसेसो । णवरि मिच्छाइट्ठि-सासणसम्माइट्ठि-सम्मामिच्छाइट्ठि-असंजदसम्माइट्ठि-संजदासजदा तिरिक्खगइमणुसगइमहिट्ठिदा सामि त्ति वत्तव्वं । एसो पढमसुत्तट्ठियभेदो। एत्थ उत्तपच्चय-गइ. गयसामित्तभेओ सव्वसुत्तेसु दट्ठव्वो। णवरि बिट्ठाणियपयडीसु तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइतिरिक्खगइपाओग्गाणुपुची-उज्जोवाणं बंधो मणुसगईए परोदओ, एत्थ पुण सोदय-परोदओ त्ति वत्तव्वं । णवरि तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुबीए परोदओ चेव बंधो, ओरालियकायजोगे तिस्से उदयाभावादो । तिरिक्खगइ- तिरिक्खाणुपुवीणं मणुसगईए सांतरो बंधो, एत्थ पुण सांतर-णिस्तरो । एवं चेव णीचागोदस्स वि वत्तव्वं । मणुसाउ-मणुसगईणं मणुसगईए सोदओ बंधो, एत्थ पुण सोदय-परोदओ।[ओरालियसरीरंगोवंग-] मणुसगइपाओग्गाणुपुवीणं सांतर-णिरंतरो मणुसगईए बंधो, एत्थ पुण सांतरो । मणुसगइपाओग्गाणुपुव्वीए मणुसगईए सोदय-परोदओ, एत्थ पुण परोदओ। ओरालियसरीरस्स मणुसगईए सोदय-परोदओ बंधो, एत्थ पुण सोदओ । ओरालियसरीरस्स मणुसगईए सांतर-णिरंतरी, एत्थ वि सांतर-णिरंतरो सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें चौंतीस प्रत्यय देखे जाते हैं, तथा उपरिम गुणस्थान प्रत्ययोंमें भी औदारिककाययोगको छोड़कर शेष योग प्रत्ययोंका अभाव है। उपरिम परीक्षाओंमें भी कोई विशेषता नहीं है। केवल इतना विशेष है कि मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत तिर्यग्गति व मनुष्यगतिके आश्रित होकर स्वामी हैं, ऐसा कहना चाहिये। यह प्रथम सूत्रस्थित भेद है। यहां पूर्वोक्त प्रत्यय और गतिगत स्वामित्वका भेद सब सूत्रों में देखना चाहिये । विशेष इतना है कि द्विस्थानिक प्रकृतियोंमें तिर्यगायु, तिर्यग्गति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी और उद्योतका बन्ध मनुष्यगतिमें परोदय होता है; परन्तु यहां इनका बन्ध स्वोदय-परोदय होता है, ऐसा कहना चाहिये । विशेषता यह है कि तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वीका परोदय ही बन्ध होता है. क्योंकि, औदारिककाययोगमें उसके उदयका अभाव है। तिर्यग्गति और तिर्यगानुपूर्वीका मनुष्यगतिमें सान्तर बन्ध होता है, किन्तु यहां उनका बन्ध सान्तरनिरन्तर होता है। इसी प्रकार ही नीचगोत्रके भी कहना चाहिये । मनुष्यायु और मनुष्यगतिका मनुष्यगतिमें स्वोदय बन्ध होता है, परन्तु यहां स्वोदय-परोदय बन्ध होता है। [औदारिकशरीरांगोपांग ] और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका बन्ध मनुष्यगतिमें सान्तर-निरन्तर होता है, परन्तु यहां सान्तर होता है। मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीका मनुष्यगतिमें स्वोदय-परोदय बन्ध होता है, परन्तु यहां परोदय बन्ध होता है । औदारिकशरीरका मनुष्यगतिमें स्वोदय-परोदय बन्ध है, परन्तु यहां स्वोदय बन्ध होता है। भौदारिकशरीरका मनुष्यगतिमें सान्तर-निरन्तर बन्ध होता है, यहां भी सान्तर निरन्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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