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१८६ ] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ
[३, १२५. सुगमं । हस्स-रदि-भय-दुगंछाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १२५ ॥ सुगमं ।
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अपुवकरणपविट्ठउवसमा खवा बंधा। अपुवकरणद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १२६ ॥
एदं पि सुगमं । मणुस्साउअस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ १२७ ॥ . . सुगमं ।
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १२८ ॥
सुगमं ।
यह सूत्र सुगम है। हास्य, रति, भय और जुगुप्साका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥१२५॥ यह सूत्र सुगम है।
मिथ्यादृष्टिसे लेकर अपूर्वकरणप्रविष्ट उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं । अपूर्वकरणकालके अन्तिम समयमें जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है। ये बन्धक हैं, शेप अबन्धक हैं ॥ १२६ ॥
यह सूत्र भी सुगम है। मनुष्यायुका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १२७ ॥ यह सूत्र सुगम है।
मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १२८॥
यह सूत्र सुगम है।
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