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________________ १, १२५. ] पंचिंदिय-पंचिंदियाग्जत्तएसु बंधसामित्तं [१८५ एदं पि सुगमं । माण-माया-संजलणाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १२१ ॥ सुगम । मिच्छादिहिप्पहुडि जाव अणियट्टी उवसमा खवा बंधा। अणियट्टिबादरद्धाए सेसे सेसे संखेज्जे भागे गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि। एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १२२ ॥ सुगमं । • लोभसंजलणस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ १२३ ॥ सुगमं । मिच्छादिटिप्पहुडि जाव अणियट्टी उवसमा खवा बंधा । अणियट्टिबादरद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १२४ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। संज्वलन मान और मायाका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १२१ ॥ यह सूत्र सुगम है। मिथ्यादृष्टि से लेकर अनिवृत्तिकरण उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं। अनिवृत्तिबादरकालके शेष शेषमें संख्यात बहुभाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १२२ ॥ यह सूत्र सुगम है। संज्वलन लोभका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १२३ ॥ यह सूत्र सुगम है। मिथ्यादृष्टि से लेकर अनिवृत्तिकरण उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं। अनिवृत्तिकरणबादरकालके अन्तिम समयमें जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १२४ ॥ ...२४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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