SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३, १३१.] पंचिंदिय-पंचिदियपजत्तरसु बंधसामित्तं [१८७ देवाउअस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ १२९ ॥ सुगमं । मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी संजदासजदा पमत्तसंजदा अप्पमत्तसंजदा बंधा। अप्पमत्तद्धाए संखेज्जदिमं भागं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १३०॥ सुगमं । देवगइ-पंचिंदियजादि-वेउब्बिय-तेजा-कम्मइयसरीर-समचउरससंठाण-वेउव्वियसरीरअंगोवंग-वण्ण-गंध-रस-फास--देवगइपाओग्गाणुपुब्बी-अगुरुवलहुव-उवघाद-परघाद-उस्सास-पसत्थविहायगइ-तसबादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर-थिर-सुभ-सुभग-सुस्सर-आदेज्ज-णिमिणणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १३१ ॥ सुगमं । देवायुका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १२९ ॥ यह सूत्र सुगम है। मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत बन्धक हैं । अप्रमत्तकालके संख्यातवें भाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १३० ॥ यह सूत्र सुगम है। देवगति, पंचेन्द्रियजाति, वैक्रियिक, तैजस व कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियिकशरीरांगोपांग, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघाद, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय और निर्माण नामकर्म, इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥१३१ ॥ यह सूत्र सुगम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy