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________________ १५६ ] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ [ ३, १०१. उवधाद-परघाद-उस्सास-पसत्थविहायगइ-तस-बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीरथिराथिर-सुहासुह-सुभग-सुस्सर-आदेज्ज-जसकित्ति-अजसकित्ति णिमिण-तित्थयर उच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १००॥ सुगमं । असंजदसम्मादिट्ठी बंधा, अबंधा णत्थि ॥१०१॥ एदस्स अत्था परूविज्जदे---- मणुसाउ-मणुसगइ-ओरालियसरीर-ओरालियसरीरअंगोवंगवज्जरिसहसंघडण-मणुसगइपाओग्गाणुपुवी-अजसकित्ति-तित्थयराणं उदयाभावादो अवसेसाणं च पयडीणमुदयवोच्छेदाभावादो 'बंधादो उदयस्स किं पुव्वं किं वा पच्छा वोच्छेदो होदि' त्ति एत्थ परिक्खा णत्थि । ___ पंचणाणावरणीय-चउदंसणावरणीय-पुरिसवेद-पंचिंदियजादि-तेजा-कम्मइयसरीर-वण्णगंध-रस-फास-अगुरुअलहुअ-तस-बादर-पज्जत्त-थिराथिर-सुहासुह-सुभगादेज्ज-जसकित्तिणिमिणुच्चागोद-पंचंतराइयाणं सोदओ बंधो, एत्थ धुवोदयत्तादो । णिद्दा-पयला-सादासाद मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, बस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण, तीर्थकर, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय, इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥१०० ॥ यह सूत्र सुगम है। असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ १०१ ॥ इसके अर्थकी प्ररूपणा करते हैं- मनुष्यायु, मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिकशरीरांगोपांग, वज्रर्षभसंहनन, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अयशकीर्ति और तीर्थकर, इनके उदयका अभाव होनेसे, तथा शेष प्रकृतियोंके उदयव्युच्छेदका अभाव होनेसे 'बन्धसे उदयका क्या पूर्वमें या क्या पश्चात् व्युच्छेद होता है' इस प्रकारकी यहां परीक्षा नहीं है। पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, पुरुषवेद, पंचेद्रियजाति, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, प्रस, बादर, पर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, आदेय, यशकीर्ति, निर्माण, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय, इनका : स्वोदय बना होता है, क्योंकि, ये ग्रहां ध्रुवोदयी हैं। निद्रा, प्रचला, साता च असाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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