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________________ १२८ ] छक्खंडागमे बंधसामित्तविचओ सुगममेदं । मिच्छाइट्टि पहुडि जाव असंजदसम्माहट्टी बंधा । एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ ७८ ॥ देसामासियसुत्तमेदं, तेणेदेण सूइदत्थपरूवणं कस्सामो- मणुसगइ ओरालियसरीर-अंगोवंगं वज्जरिसहसंघडण मणुसगइपाओग्गाणुपुव्वी अजसकित्तीणमुदयाभावादी बंधादयाणं पुव्वं पच्छा वोच्छेदपरिक्खा ण कीरदे । ण सेसाणं पि, बंधस्सेव उदयस वोच्छेदाभावादो । [ ३, ७८. पंचणाणावरणीय - चउदंसणावरणीय-पंचिदियजादि - तेजा- कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रस फास-अगुरुवलहुअ-तस - बादर - पज्जत थिराथिर - सुभासुभ-सुभग-आदेज्ज-जसकित्ति - णिमिणउच्चागोद-पंचंतराइयाणं सोदएणेव बंधो । णिद्दा- पयला-सादासाद- बारसकसाय- पुरिसवेद-हस्सरदि-अरदि-सोग-भय-दुगुंछाणं सोदय-परोदएण बंधो अद्भुवोदयत्तादों । समचउरससंठाण " यह सूत्र सुगम है । मिथ्यादृष्टिसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ ७८ ॥ यह सूत्र देशामर्शक है, इसलिये इससे सूचित अर्थकी प्ररूपणा करते हैं- मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिकशरीरांगोपांग, वज्रर्षभसंहनन. मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी और अयशकीर्ति, इनके उदयका अभाव होनेसे बन्ध और उदयके पूर्व या पश्चात् व्युच्छेद होनेकी परीक्षा नहीं की जाती है। शेष प्रकृतियों की भी वह परीक्षा नहीं की जाती, क्योंकि, बन्धके समान उनके उदयके व्युच्छेदका अभाव है । Jain Education International पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, पंचेन्द्रिय जाति, तेजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, त्रस, बादर, पर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, आदेय, यशकीर्ति, निर्माण, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय, इनका स्वोदयसे ही बन्ध होता है । निद्रा, प्रचला, साता व असाता वेदनीय, बारह कषाय, पुरुषवेद, हास्य. रति, अति, शोक, भय और जुगुप्सा, इनका स्वोदय-परोदयसे बन्ध होता है, क्योंकि, ये अनुवोदयी प्रकृतियां हैं । समचतुरस्रसंस्थान, प्रत्येकशरीर और उपघातका स्वोदय १ काप्रतौ ' ओरालि यसरीरंगोवंग' इति पाठः । २ प्रतिषु ' अद्भुवो अद्भुवोदयतादो' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001402
Book TitleShatkhandagama Pustak 08
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1947
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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