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३, ७७.]
देवदीए पंचणाणावरणीयादीणं बंधसामित्तं
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तिरिक्खअपज्जत्ताणं व पच्चया परूवेदव्वा । तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइ - एइंदिय-बीइंदिय-ती इंदियचउरिंदियजादि-तिरिक्ख गइपाओग्गाणुपुव्वी - आदावुजाव - थावर - सुहुम-साहारणसरीराणि तिरिक्खइसंजुत्तं वज्झति । मणुस्सा उ- मणुस गइ पाओग्गाणुपुव्वी उच्चागोदाणि मणुसगइ संजुत्तं बज्झति । अवसेसाओ पयडीओ तिरिक्ख- मणुसगइसंजुत्तं बज्झति । मगुस्सा सामी । बंधद्धाणं बंधविणणं सादिआदिपरूवणा च पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तपरूवणाए तुल्ला ।
देवदीप देवे पंचणाणावरणीय छदंसणावरणीय सादासादबारस कसाय- पुरिसवेद-हस्स-रदि- अरदि-सोग-भय- दुगुंछा - मणुसगइपंचिंदियजादि-ओरालिय- तेजा कम्मइयसरीर-समचउरससंठाण - ओरालियसरीर अंगोवंग- वज्जरिसहसंघडण वण्ण-गंध-रस - फास - मणुसाणुपुव्वि-अगुरुअलहुव उवघाद- परघाद-- उस्सास -पसत्थविहायगदि-तसबादर- पज्जत्त- पत्तेयसरीर-थिराथिर-सुहासुह-सुभग-सुस्सर-आदेज्ज-जसकित्ति - अजसकित्तिणिमिण - उच्चा गोद पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ।। ७७ ।
प्रत्ययोंकी प्ररूपणा तिर्यच अपर्याप्तोंके समान करना चाहिये । तिर्यगायु, तिर्यग्गति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, आताप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म और साधारणशरीरको तिर्यग्गति से संयुक्त बांधते हैं। मनुष्यायु, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रको मनुष्यगतिसे संयुक्त बांधते हैं। शेष प्रकृतियों को तिर्यग्गति व मनुष्यगति से संयुक्त बांधते हैं। मनुष्य स्वामी हैं । बन्धाध्वान, बन्धविनष्टस्थान और सादि आदिकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्येच अपर्याप्तोंकी प्ररूपणा के समान है ।
देवगतिमें देवोंमें पांच ज्ञानावरणीय, छह दर्शनावरणीय, साता व असाता वेदनीय, बारह कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जगुप्सा, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिक, तैजस व कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, वज्रर्षभसंहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय, इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ७७ ॥
७. मं. १८.
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