SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २, १, १५.] सामित्ताणुगमे इंदियमग्गणा क्खएण तेसिं चेव संतोवसमेण अणुदओवसमेण वा सव्वघादिफद्दयाणमुदएण घाणिदियमुप्पञ्जदि । तं चेव घाणिदियं पास-जिभिदियाविणाभावेण तेइंदियजादिणामकम्मोदयाविणाभावेण वा तेइंदियो णाम । तेण जुत्तो जीवो वि तेइंदियो होदि । एदेण कारणेण खओवसमियाए लद्धीए. तेइंदिओ होदि त्ति सुत्ते उत्तं । पस्सिदियावरणस्स सव्वघादिफद्दयाणं संतोवसमेण देसघादिफद्दयाणमुदएण चक्खु-घाण-जिभिदियावरणाणं सव्वघादिफद्दयाणमुदयक्खएण तेसिं चेव संतोवसमेण अणुदओवसमेण वा देसधादिफद्दयाणमुदएण सोइंदियावरणस्स देसघादिफद्दयाणं उदयक्खएण तेसिं चेव संतोवसमेण अणुदओवसमेण वा सव्वधादिफद्दयाणमुदएण चक्खिदियं उप्पज्जदि । फास जिब्भा-घाणिदियाविणाभावेण चक्खिदियं (चरिंदियं) ति भण्णदि । तेण जुत्तो जीवो चउरिदियो । चउरिंदियजादिणामकम्मोदयाविणाभावेण वा चक्खु चउरिदियं ति वत्तव्यं । फासिंदियादिचउहि इंदिएहि जुत्तो ति वा जीवो चउरिंदिओ णाम । तेण कारणेण खओवसमियाए लद्धीए चउरिंदिओ होदि ति उत्तं । फासिंदियावरणस्स सव्वधादिफयाणं संतोवसमेण देसघादिफद्दयाणमुदएण चदुण्णमिंदियाणं सव्वघादिफद्दयाणमुदयक्खएण तेसिं चेव संतोवसमेण देसघादिफद्दयाण तथा सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयसे घ्राणेन्द्रिय उत्पन्न होती है। वही घ्राणेन्द्रिय स्पर्श और जिह्वा इन्द्रियोंकी अविनाभावी अथवा त्रीन्द्रिय जाति नामकर्मोदयकी अविनाभावी होनेसे तृतीय इन्द्रिय कहलाती है। उस इन्द्रियसे युक्त जीव भी त्रीन्द्रिय होता है। इसी कारणसे 'क्षायोपशमिक लब्धिके द्वारा जीव त्रीन्द्रिय होता है ' ऐसा सूत्रमें कहा गया है। स्पर्शेन्द्रियावरणके सर्वघाती स्पर्धकोंके सत्त्वोपशम व देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे; चक्षु, घ्राण और जिह्वा इन्द्रियावरणोंके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयक्षयसे व उन्हींके सत्त्वोपशमसे अथवा अनुदयोपशमसे एवं देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे; तथा श्रोत्रेन्द्रियावरणके देशघाती स्पर्धकोंके उदयक्षयसे व उन्हींके सत्त्वोपशमसे अथवा अनुदयोपशमसे एवं सर्वघाती स्पर्धकों के उदयसे चक्षु इन्द्रिय उत्पन्न होती है। स्पर्श, जिह्वा और घ्राण इन्द्रियोंकी अविनाभावी होनेसे चक्षु इन्द्रिय चतुर्थ इन्द्रिय कहलाती है । उस चक्षु इन्द्रियसे युक्त जीव चतुरिन्द्रिय होता है । अथवा, चतुरिन्द्रिय जाति नामकर्मोदयकी अविनाभावी होनेसे चक्षुको चतुरिन्द्रिय कहना चाहिये । स्पर्शेन्द्रियादि चार इंन्द्रियोंसे युक्त होनेके कारण जीव चतुरिन्द्रिय कहलाता है। इसी कारण 'क्षायोपशमिक लब्धिके द्वारा जीव चतुरिन्द्रिय होता है ' ऐसा कहा गया है। ___ स्पर्शेन्द्रियावरणके सर्वघाती स्पर्धकोंके सत्त्वोपशम व देशघाती स्पर्धकों के उदयसे; चार इन्द्रियोंके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयक्षय और उन्हींके सत्त्वोपशमसे तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy