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________________ छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, १, १५. मुदरण जेण सोदिदियमुप्पज्जदि तेण तं खओवसमियं । सेसचउरिदियांविणाभावादो पंचिंदियजादिणामकम्मोदयात्रिणाभावादो वा तं पंचिंदियं । तेण पंचिंदिएण पंचहि इंदिएहि वा जुत्तो जीवो पंचिंदिओ णाम । फास-जिब्भा-घाण-चक्खु-सोदिदियावरणाणि पयडिसमुक्कित्तणाए णोवइट्टाणि, कधं तेसिमिह णिद्देसो ? ण, फासिंदियावरणादीणं मदिआवरणे अंतब्भावादो । ण च पंचिंदियखओवसमं तत्तो समुप्पण्णणाणं वा मुच्चा अण्णं मदिणाणमत्थि जेणिंदियावरणेहिंतो मदिणाणावरणं पुधभूदं होज्ज । ण च एदेहिंतो पुधभूदं णोइंदियमत्थि जेण णोइंदियणाणस्स मदिणाणत्तं होज्ज । णोइंदियावरणख ओवसमजणिदं णोइंदियमिदि तदो पुधभूदं चेव ? जदि एवं तो ण' तदो समुप्पण्णणाणं मदिणाणं, मदिणाणावरणखओवसमेणाणुप्पण्णत्तादो । तदो मदिणाणाभावेण मदिणाणावरणस्स वि अभावो होज्ज । तम्हा देशघाती स्पर्धकों के उदयसे चूंकि श्रोत्रेन्द्रिय उत्पन्न होती है इसीसे उसे क्षायोपशमिक कहा है। शेष चारों इन्द्रियोंकी अविनाभावी होनेसे अथवा पंचेन्द्रिय जाति नामकर्मोदयकी अविनाभावी होनेसे श्रोत्रेन्द्रिय पंचम इन्द्रिय है । उस पंचम इन्द्रियसे अथवा पांचों इन्द्रियोंसे युक्त जीव पंचेन्द्रिय होता है। शंका-स्पर्श, जिह्वा, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र इन्द्रियावरणोंका प्रकृतिसमुत्कीतन अधिकारमें तो उपदेश नहीं दिया गया, फिर यहां उनका कैसे निर्देश किया जाता है? समाधान-नहीं, स्पर्शेन्द्रियादिक आवरणोंका मतिआवरणमें ही अन्तर्भाव होनेसे वहां उनके पृथक् उपदेशकी आवश्यकता नहीं समझी गई । पंचेन्द्रियोंके क्षयोपशमको वा उससे उत्पन्न हुए ज्ञानको छोड़कर अन्य कोई मतिज्ञान है ही नहीं जिससे इन्द्रियावरणोंसे मतिज्ञानावरण पृथग्भूत होवे । और न इन पांचों इद्रियोंसे पृथग्भूत नोइन्द्रिय है जिससे नोइन्द्रियज्ञानको मतिज्ञान कहा जा सके। शंका-नोइन्द्रियावरणके क्षयोपशमसे उत्पन्न होनेवाली नोइन्द्रिय उक्त पांच इन्द्रियोंसे पृथग्भूत ही है ? समाधान--यदि ऐसा है तो उससे उत्पन्न होने वाला ज्ञान मतिज्ञान नहीं होगा, क्योंकि वह मतिज्ञानावरणके क्षयोपशमसे नहीं उत्पन्न हुआ । इस प्रकार मतिशानके अभावसे मतिज्ञानावरणका भी अभाव हो जायगा। इसलिये छहों इन्द्रियोंका .......................................... १ प्रतिषु ' तेण' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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