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५८] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १, ११. सदमेत्तो | २६६८ ।
देवगदीए एक्कवीस-पंचवीस-सत्तावीस-अट्ठावीस-एगुणतीसउदयट्ठाणाणि होति । २१ । २५ । २७। २८ । २९ । तत्थ इमं एक्कवीसाए उदयट्ठाणं- देवगदि-पंचिंदियजादितेजा-कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रस-फास देवगदिपाओग्गाणुपुव्वी-अगुरुगलहुअ-तस-बादरपज्जत्त-थिराथिर-सुभासुभ-सुभग-आदेज्ज-जसकित्ति-णिमिणमिदि एदासिं पयडीणं एक्कट्ठाणं । भंगो एक्को |१।। सरीरं गहिदे आणुपुग्विमवणेद्ण वेउब्वियसरीर-समचउरससंठाण-वेउब्वियसरीरअंगोवंग-उवघाद-पत्तेयसरीरेसु पविढेसु पणुवीसाए हाणं होदि । मंगो एको । १ ।। सरीरपजत्तीए पज्जत्तयदस्स परघाद-पसत्थविहायगदीसु पक्खित्तासु
अर्थात् छठवीस सौ अड़सठ होता है ( २६६८ )।
___सामान्य विशेष वि. वि. १-२० प्रकृतियोंवाले उदयस्थान x २-२१ ३-२५ ४-२६ ५-२७
x १ + १ ६-२८
५७६ + १ + १२ ७-२९
५७६ + १ + १+१२ ८-३०
११५२
१+२४ ९-३१
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२६०२ + ४ + ६२२६६८ देवगतिमें इक्कीस, पञ्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस और उनतीस प्रकृतियोंवाले पांच उदयस्थान होते हैं। उनमें इक्कीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान इस प्रकार है- देवगति', पंचेन्द्रियजाति', तैजस और कार्मण शरीर, वर्ण', गंध, रस, स्पर्श', देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी', अगुरुलघुक, त्रस", बादर, पर्याप्त३, स्थिर", अस्थिर, शुभ, अशुभ', सुभग, आदेय, यशकीर्ति और निर्माण' इन इक्कीस प्रकृतियोंका एक उदयस्थान होता है। भंग एक है (१)।
शरीर ग्रहण करलेनेपर देवगतिमें आनुपूर्वीको छोड़कर व वैक्रियिकशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियिकशरीरांगोपांग, उपघात और प्रत्येकशरीर, इन पांच प्रकृतियोंको मिलादेनेपर पच्चीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान होता है। भंग एक है (१)।
शरीरपर्याप्ति पूर्ण करलेनेवाले देवके पूर्वोक्त पच्चीस प्रकृतियों में परघात और
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