SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, १, ११. वीसाए वा हाणं होदि। भंगा दोण्हं पि छ एक्को । ६ । १। तित्थयरुदएण वा अणुदएण वा दंडगदस्स परघादं पसत्थापसत्थविहायगदीणमेक्कदरं च घेत्तूण पक्खित्ते अट्ठावीसाए वा एगुणतीसाए वा ठाणं होदि । णवरि तित्थयराणं पसत्थविहायगदी एक्का चेव उप्पज्जदि । भंगा अट्ठावीसाए बारस, एगुणतीसाए एक्को। १२।१। आणापाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स उस्सासे पक्खित्ते तीसाए एगुणतीसाए वा ठाणं होदि । भंगा एगुणतीसाए बारस, तीसाए एक्को । १२।१। भासापज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स सुस्सर-दुस्सरेसु एक्कदरम्मि पविढे तीसाए एक्कतीसाए वा हाणं होदि । भंगा तीसाए चउवीस |२४|| एक्कत्तीसाए एक्को, तित्थयराणं दुस्सर-अप्पसत्थविहायगदीणं उदयाभावा | १ || ............. सत्ताईस प्रकृतियोंवाले उदयस्थानमें केवल एक होगा। ६।१। तीर्थकर प्रकृतिके उदयसे रहित पूर्वोक्त छब्बीस प्रकृतियोंमें परघात और प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगतिमेसे कोई एक लेकर मिलादेनेसे अट्ठाईस प्रकृतियोंवाला तथा तीर्थकर प्रकृतिके उदय सहित सत्ताईस प्रकृतियों में उक्त दो प्रकृतियां मिलादेनेसे उनतीस प्रकृतियोंवाला दंडसमुद्घातगत केवलीका उदयस्थान होता है। विशेषता यह है कि तीर्थंकरोंके केवल एक प्रशस्तविहायोगति ही उदयमें आती है । इस प्रकार अट्ठाईस प्रकृतियोंवाले उदयस्थानके (छह संस्थान और प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगतिके विकल्पोंसे) बारह भंग होते हैं, और उनतीस प्रकृतियोंवाले उदयस्थानका विकल्प रहित केवल एक ही भंग है । (१२ । १।)। पूर्वोक्त विशेष-विशेष मनुष्यके आनप्राणपर्याप्ति पूर्ण करलेनेपर उक्त अट्ठाईस और उनतीस प्रकृतियोंमें उच्छ्वास मिलादनेपर क्रमशः उनतीस व तीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान होता है । इनके भंग पूर्वोक्तानुसार उनतीस प्रकृतियोंवाले उदयस्थानके बारह और तीस प्रकृतियोंवाले उदयस्थानका केवल एक है। (१२।१)। ___ उसी विशेष-विशेष मनुष्यके भाषापर्याप्ति पूर्ण करलेनेपर पूर्वोक्त उनतीस व तीस प्रकृतियों में सुस्वर और दुस्वरमेंसे कोई एक मिलादेनेसे क्रमशः तीस और इकर्तास प्रकृतियोंवाला उदयस्थान होता है। तीस प्रकृतियोंवाले उदयस्थानके भंग (छह संस्थान, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति और सुखर-दुस्खरके विकल्पोंसे) चौवीस होते हैं ( २४ )। तथा इकतीस प्रकृतियोंवाले उदयस्थानका भंग केवल मात्र एक होता है (१) क्योंकि, तीर्थकरोंके दुखर और अप्रशस्त विहायोगति ( तथा प्रथम संस्थानको छोड़ शेष पांच संस्थानों) का उदय नहीं होता। ... १ मप्रतौ — उज्जदि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy