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५४] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[ २, १, ११. भंगा तत्तिया चेव | ५७६ || भासापज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स सुस्सग्दुस्सराणमेक्कदरे पक्खित्ते तीसाए द्वाणं होदि । मंगा अद्वेदालीसूणवारससदमेत्ता' | ११५२ ।।
संपहि आहारसरीरोदइल्लाणं विसेसमणुस्साणं भण्णमाणे तेसिं पंचवीस-सत्तावीसअंडावीस-एगुणतीस त्ति चत्तारि उदयट्ठाणाणि । २५ । २७ । २८ । २९ । मणुस्सगदिपंचिंदियजादि-आहार-तेजा-कम्मइयसरीर-समचउरससंठाण-आहारसरीरअंगोवंग-वण्ण-गंधरस-फास-अगुरुअलहुअ-उवघाद-तस-बादर-पज्जत्त-पतेयसरीर-थिराथिर-सुभासुभ-सुभगआदेज्ज-जसकित्ति-णिमिणणामाणि एदासिं पणुवीसपयडीणमेक्कमुदयट्ठाणं । भंगो एक्को |१|| सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स परघाद-पसत्थविहायगदीसु पक्खित्तासु सचावीसाए द्वाणं होदि । भंगो एको |१|| आणापाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स उस्सासे संछुद्धे अट्ठावीसाए द्वाणं होदि। भंगो एक्को | १ | । भासापज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स
पूर्वोक्त प्रकार पांच सौ छयत्तर ही हैं ( ५७६ )।
__ भाषापर्याप्ति पूर्ण करलेनेवाले मनुष्यके पूर्वोक्त उनतीस प्रकृतियों में सुस्वर और दुस्वरमेंसे कोई एक मिलादेनेपर तीस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान होता है । यहां भंग (पूर्वोक्त विकल्पोंके अतिरिक्त सुस्वर दुस्वरके विकल्पसे २४२४२४६४६४२४२%) १९५२ ग्यारह सौ बावन या अड़तालीस कम बारह सौ हैं।
अब आहारकशरीरके उदयवाले विशेष मनुष्योंके उदयस्थान कहते हैं । उनके पञ्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस और उनतीस प्रकृतियोंवाले चार उदयस्थान होते हैं। २५।२७। २८ । २९ । मनुष्यगति', पंचेन्द्रिय जाति', आहारक', तैजस' और फार्मण' शरीर, समचतुरस्रसंस्थान', आहारकशरीरांगोपांग', वर्ण', गंध', रस, स्पर्श', अगुरुलघुकर, उपघात३, त्रस", बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर", स्थिर, अस्थिर', शुभ, अशुभ, सुभग", आदेय, यशकीर्ति और निर्माण, इन पञ्चीस प्रकृतियोंका एक उदयस्थान होता है । यहां भंग एक ही है (१)।
शरीरपर्याप्ति पूर्ण करलेनेवाले विशेष मनुष्यके पूर्वोक्त पच्चीस प्रकृतियोंमें परघात और प्रशस्तविहायोगति मिलादेनेसे सत्ताईस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान हो जाता है। यहां भंग एक है (१)।
आनप्राणपर्याप्ति पूर्ण करलेनेवाले विशेष मनुष्यके पूर्वोक्त सत्ताईस प्रकृतियों में उच्छ्वास मिलादेनेसे अट्ठाईस प्रकृतियोंवाला उदयस्थान होता है । यहां भंग एक है (१)।
भाषापर्याप्ति पूर्ण करलेनेवाले विशेष मनुष्यके पूर्वोक्त अट्ठाईस प्रकृतियों में
१ सण्णिम्मि मणुस्साम्मि य ओघेक्कदरं तु केवले वज्जं । सुभगादैजनसाणि य तित्थुजुदे सत्यमेदीदि ॥ गो. क. ६०१.
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