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________________ ३०] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, १, ५. सम्भावासम्भावसरूवेण ठविदं ठवणणेरइओ। णेरइयपाहडजाणओ अणुवजुत्तो आगमः दव्वणेरइओ । अणागमदव्वणेरइओ तिविहो जाणुगसरीर-भविय-तव्वदिरित्तभेएण । जाणुगसरीर-भवियं गदं । तव्वदिरित्तणोआगमदवणेरइओ णाम दुविहो कम्म-णोकम्मभेएण । कम्मणेरइओ णाम णिरयगदिसहगदकम्मदव्वसमूहो । पास-पंजर-जंतादीणि णोकम्मदव्वाणि णेरइयभावकारणाणि णोकम्मदव्वणेरइओ णाम । गेरइयपाहुडजाणओ उवजुत्तो आगम भावणेरइओ णाम । णिरयगदिणामाए उदएण णिरयभावमुवगदो णोआगमभावणेरइओ णाम । एदं गेरइयसमूहं बुद्धीए काऊण णेरइओ णाम कधं होदि त्ति पुच्छा कदा । अधवा गैरइओ णाम किमोदइएण भावेण, किमुवसमिएण, किं खइएण, किं खओवसमिएण, किं पारिणामिएण भावेण होदि त्ति बुद्धीए काऊण गेरइओ णाम कधं होदि त्ति वुत्तं । एदस्स संदेहस्स णिराकरणटुं उत्तरसुत्तं भणदि...णिरयगदिणामाए उदएण ॥५॥ ................ एकत्व करके सद्भाव और असद्भाव स्वरूपसे स्थापित स्थापना नारकी कहलाता है। नारकीसम्बन्धी प्राभृतका जाननेवाला किन्तु उसमें अनुपयुक्त जीव आगम द्रव्य नारकी है। शायक शरीर, भव्य और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे अनागम द्रव्य नारकी तीन प्रकारका है। शायकशरीर और भव्य तो गया। कर्म और नोकर्मके भेदसे तद्व्यतिरिक्त नोआगम द्रव्य नारकी दो प्रकारका है। नरकगतिके साथ आये हुए कर्मद्रव्यसमूहको कर्मनारकी कहते हैं। पाश, पंजर, यंत्र आदि नोकर्मद्रव्य जो नारक भावकी उत्पत्तिमें कारणभूत होते हैं, नोकर्म द्रव्य नारकी हैं। नारकियों सम्बन्धी भूतका जानकार और उसमें उपयोग रखनेवाला जीव आगम भाव नारकी है। नरक गति नामप्रकृतिके उदयसे नरकावस्थाको प्राप्त हुआ जीव नोआगम भाव नारकी है । इस नारकीसमूहका विचार करके 'नारकी जीव किस प्रकार होता है। यह प्रश्न किया गया है। अथवा, 'क्या नारकी औदयिक भावसे होता है, क्या औपशमिक भावसे, क्या क्षायिक भावसे, क्या क्षायोपशमिक भावसे, क्या परिणामिक भावसे होता है ?" ऐसा बुद्धिसे विचार कर ' नारकी जीव किस प्रकार होता है ? ' यह पूछा गया है। इस सन्देहको दूर करनेके लिये आचार्य अगला सूत्र कहते हैंनरकगति नामप्रकृतिके उदयसे जीव नारकी होता है ॥५॥ १ प्रतिषु — पास-पंजरवंतादीणि ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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