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२, १, ९.]
सामित्ताणुगमे गदिमग्गणा एवंभूदणयविसएण' णोआगमभावणिक्खेवेण णिरयगदिणामाए उदएण णेरइओ णाम भवदि।
तिरिक्खगदीए तिरिक्खो णाम कधं भवदि ? ॥६॥
एत्थ वि गए णिक्खेवे ओदइयादिपंचविहभावे च अस्सिद्ग पुव्वं व संदेहस्सुप्पत्ती परूवेदव्या।
तिरिक्खगदिणामाए उदएण ॥७॥
तिरिक्खगदिणामकम्मोदएणुप्पण्णपज्जायपरिणदम्मि जीवे तिरिक्खाभिहाणववहार-पच्चयाणमुवलंभादो।
मणुसगदीए मणुसो णाम कधं भवदि ? ॥ ८॥ एत्थ वि पुत्वं व णय-णिक्खेवादीहि संदेहुप्पत्ती परूवेदव्वा । मणुसगदिणामाए उदएण ॥ ९ ॥ कुदो ? मणुसगदिणामकम्मोदयजणिदपज्जायपरिणयजीवम्मि मणुस्साहिहार्णवव
एवंभूतनयके विषयसे, नोआगमभावनिक्षेपसे एवं नरकगति नामप्रकृतिके उदयसे जीव नारकी होता है।
तिर्यंचगतिमें जीव तिर्यंच किस प्रकार होता है ? ॥६॥
यहां भी नय, निक्षेप और औदयिकादि पांच प्रकारके भावोंके आश्रयसे पूर्वोक्तानुसार संदेहकी उत्पत्तिका प्ररूपण करना चाहिये ।
तिर्यंचगति नामप्रकृतिके उदयसे जीव तिर्यंच होता है ॥७॥
क्योंकि, तिर्यंचगति नामकर्मके उदयसे उत्पन्न हुई पर्यायमें परिणत जीवके तिर्यंच संक्षाका व्यवहार और ज्ञान पाया जाता है।
मनुष्यगतिमें जीव मनुष्य कैसे होता है ? ॥ ८॥ ___ यहां भी पूर्वानुसार नय-निक्षेपादिसे सन्देहकी उत्पत्तिका प्ररूपण करना चाहिये।
मनुष्यगति नामप्रकृतिके उदयसे जीव मनुष्य होता है ॥९॥ क्योंकि, मनुष्यगति नामकर्मके उदयसे उत्पन्न हुई पर्यायमें परिणत जीवके
१ प्रतिषु ' एवंभूदणयविसएण ओदइएण ' इति पाठः। २ आ-कप्रत्योः ‘मणुस्साहियाण-' इति पाठः ।
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