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२, १, १.] सामित्ताणुगमे णय-णिक्खेवादिपरूवणं
'ववहारस्स दु वयणं जइया कोदंड-कंडगयहत्थो । भमइ मए मग्गंतो तइया सो होइ णेरइओ ॥ २ ॥ उज्जुसुदस्स दु वयणं जइआ इर ठाइदूण ठाणम्मि । आहणदि मए पावो तइया सो होइ णेरइओ ॥ ३ ॥ सद्दणयस्स दु वयणं जइया पाणेहि मोइदो जंतू । तइया सो णेरइयो हिंसाकम्मेण संजुत्तो ॥ ४ ॥ वयणं तु समभिरूढं णारयकम्मस्स बंधगो जइया । तइया सो णेरइओ णारयकम्मेण संजुत्तो ॥५॥ णिरयगई संपत्तो जइया अणुहवइ णारयं दुक्खं ।
तइया सोणेरइओ एवंभूदो णओ भणदि ॥६॥ एदं सव्वणयविसयं णेरइयसमूहं बुद्धीए काऊण णेरइओ णाम कधं होदि सि पुच्छा कदा।
अधवा णाम-द्ववण-दव्य-भावभेएण णेरइया चउबिहा होति । णामणेरइयो णाम णेरइयसहो । सो एसो ति बुद्धीए अप्पिदस्स अणप्पिदेण' एयत्तं काऊण
व्यवहार नयका वचन इस प्रकार है-जब कोई मनुष्य हाथमें धनुष और बाण लिये मगोंकी खोजमें भटकता फिरता है तब वह नारकी कहलाता है॥२॥
__ ऋजुसूत्र नयका वचन इस प्रकार है-जब आखेटस्थानपर बैठकर पापी मृगोंपर आघात करता है तब वह नारकी कहलाता है ।। ३॥
शब्द नयका वचन इस प्रकार है- जब जन्तु प्राणोंसे विमुक्त कर दिया जाय तभी वह आघात करनेवाला हिंसाकर्मसे संयुक्त मनुष्य नारकी कहा जाय ॥४॥
__ समभिरूढ नयका वचन इस प्रकार है- जब मनुष्य नारक कर्मका बन्धक होकर नारक कर्मसे संयुक्त हो जाय तभी वह नारकी कहा जाय ॥ ५॥
जब वही मनुष्य नरक गतिको पहुंचकर नरकके दुःख अनुभव करने लगता है तभी वह नारकी है, ऐसा एवंभूत नय कहता है ॥६॥
इन समस्त नोंके विषयभूत नारकीसमूहका विचार करके ही 'नारकी जीव किस प्रकार होता है' यह प्रश्न किया गया है।
अथवा, नाम, स्थापना, द्रव्य और भावके भेदसे नारकी चार प्रकारके होते हैं। नाम-मारकी 'नारकी' शब्दको ही कहते हैं। यह घही है ' ऐसा बुद्धिसे विवक्षित नारकीका अविवक्षित वस्तुके साथ
१ अतः प्राक् संग्रहन यसम्बन्धिनी गाथा स्खलिता प्रतिभाति । २ प्रतिषु ' बुद्धीए अप्पिदस्स ', मप्रतौ 'बुद्धीए अप्पिदस्स अप्पिदेण ' इति पाठः ।
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