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________________ २८ ] छक्खंडागमे खुदाबंधो [ २, १, ३. मग्गणाणं विच्छेदाविच्छेदत्थित्तपरूवयस्स मग्गणकालंतरेहि सह एयत्तविरोहादो । एयजीवेण सामित्तं ॥ ३॥ जहा उद्देसो तहा णिद्देसो त्ति णायाणुसरणट्टमेगजीवेण सामित्तं भणिस्सामो इदि वृत्तं । गदियानुवादेण णिरयगदीए रईओ णाम कथं भवदि ? ॥४॥ एदं पुच्छात्तं किष्णिवंधणं' ? णयसमूहणिबंधणं । जदि एक्को चेत्र णयो हो तो संदेहो विण उप्पजेज्ज । किंतु गया बहुआ अस्थि । तेण संदेहो समुप्पादे कस्स णयस्स विसयमस्सिदूण ट्ठिदणेरईओ एत्थ पडिग्गहिदो त्ति । णयाणमभिप्पाओ एत्थ उच्चदे । तं जहाI - कंपि णरं दहूण य पावजणसमागमं करेमाणं । गमण भण्णइ रइओ एस पुरिसोति ॥ १ ॥ ओके विच्छेद और अविच्छेद के अस्तित्वका प्ररूपक है, अतः उसका मार्गणाओंके काल और अन्तर बतलाने वाले अनुयोगद्वारोंके साथ एकत्व माननेमें विरोध आता है । एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्वकी प्ररूपणा की जाती है ॥ ३ ॥ 'जैसा उद्देश, तैसा निर्देश ' इस न्यायके अनुसरणार्थ एक जीवकी अपेक्षा earerant वर्णन करते हैं, ऐसा प्रस्तुत सूत्रमें कहा गया है । गतिमार्गणानुसार नरकगतिमें नारकी जीव किस प्रकार होता है १ ॥ ४ ॥ शंका- यह प्रश्नात्मक सूत्र किस आधारसे रचा गया है ? समाधान - यह प्रश्नात्मक सूत्र नयसमूहके आधारसे रचा गया है । यदि एक ही नय होता तो कोई सन्देह भी उत्पन्न न होता । किन्तु नय अनेक हैं इसलिये सन्देह उत्पन्न होता है कि किस नयके विषयका आश्रय लेकर स्थित नारकी जीवका यहां ग्रहण किया गया है | यहांपर नौका अभिप्राय बतलाते हैं। वह इस प्रकार है किसी मनुष्य को पापी लोगोंका समागम करते हुए देखकर नैगम नयसे कहा जाता है कि यह पुरुष नारकी है ॥ १ ॥ Jain Education International ( जब वह मनुष्य प्राणिबध करनेका विचार कर सामग्रीका संग्रह करता है तब वह संग्रह मयसे नारकी कहा जाता है | ) १ प्रतिषु ' किष्णबंधणं ' इति पाठः । २ प्रति ' चेव ण होज्ज ' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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