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________________ ५८०] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ११-२, १५. हेट्ठिममज्झिमगेवज्जविमाणवासियदेवा संखेज्जगुणा ॥ १५॥ को गुणगारो ? संखेज्जा समया । कारणं पुब्बं व वत्तव्यं । हेट्ठिमहेट्ठिमगेवज्जविमाणवासियदेवा संखेज्जगुणा ॥ १६ ॥ को गुणगारो ? संखेज्जा समया। आरणच्चुदकप्पवासियदेवा संखेजगुणा ॥ १७ ॥ को गुणगारो ? संखेज्जा समया । कारणं सुगमं । आणद-पाणदकप्पवासियदेवा संखेज्जगुणा ॥ १८ ॥ को गुणगारो ? संखेज्जा समया । सत्तमाए पुढवीए णेरड्या असंखेज्जगुणा ॥ १९ ॥ को गुणगारो ? सेडीए असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाणि सेडीपढमवग्गमूलागि । कुदो ? आणद-पाणददव्वेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण सेडिबिदियवग्गमूलं गुणेदण सेडिमोवट्टिदे गुणगारुवलद्धीदो । अधस्तन-मध्यमग्रैवेयकविमानवासी देव संख्यातगुणे हैं ॥ १५ ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । कारण पूर्वके समान कहना चाहिये। अधस्तन-अधस्तनोवेयकविमानवासी देव संख्यातगुणे हैं ॥ १६ ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। आरण-अच्युतकल्पवासी देव संख्यातगुणे हैं ॥ १७ ।। गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । कारण सुगम है । आनत-प्राणतकल्पवासी देव संख्यातगुणे हैं ।। १८ ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । सप्तम पृथिवीके नारकी असंख्यातगुणे हैं ॥ १९ ॥ गुणकार क्या है ? जगश्रेणीके असंख्यातवें भागप्रमाण असंख्यात जगश्रेणी प्रथम वर्गमूल गुणकार है, क्योंकि, पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण आनत प्राणत कल्पके द्रव्यसे जगश्रेणीके द्वितीय वर्गमूलको गुणितकर जगश्रेणीको अपवर्तित करनेपर उक्त गुणकार उपलब्ध होता है। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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