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५७६ ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ११-२, २. अप्पाबहुगसूइदत्थस्स विसेसिऊग परूवणादो। एवं पोजणसुत्तं परूविय पयदत्थपरूवणमुत्तरसुत्तं भणदि
सव्वत्थोवा मणुसपज्जत्ता गम्भोवक्कंतिया ॥२॥
गम्भजा मणुस्सा पज्जत्ता उवरि वुच्चमाणसव्यरासीओ पेक्खिऊण थोवा होति । कुदो ? विस्ससादो । एदे केत्तिया गठभोवक्कंतिया ? मणुस्साणं चदुब्भागो।
मणुसिणीओ संखेज्जगुणाओ ॥ ३ ॥
को गुणगारो ? तिण्णि रूवाणि । कुदो ? मणुस्सगभोवक्कंतियचदुब्भागेण पज्जत्तदव्वेण तस्सेव तिसु चदुभागेसु ओवहिदेसु तिण्णिरूवावलंभादो ।
सव्वट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवा संखेज्जगुणा ॥४॥ को गुणगारो ? संखेज्जसमया । के वि आइरिया सत्त रूवाणि, के वि पुण
ही है, क्योंकि, वह अल्पबहुत्वानुयोगद्वारसे सूचित अर्थकी विशेषताकर प्ररूपणा करता है । इस प्रकार प्रयोजनसूत्रको कहकर प्रकृत अर्थके निरूपणार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं---
मनुष्य पर्याप्त गर्भोपक्रान्तिक सबमें स्तोक हैं ॥ २ ॥
गर्भज मनुष्य पर्याप्त आगे कही जानेवाली सब राशियोंकी अपेक्षा स्तोक है, क्योंकि, ऐसा स्वभावसे है।
शंका-ये गर्भोपक्रान्तिक कितने हैं ? समाधान-मनुष्योंके चतुर्थ भागप्रमाण हैं। पर्याप्त मनुष्योंसे मनुष्यनियां संख्यातगुणी हैं ॥ ३ ॥
गुणकार कितना है ? गुणकार तीन रूप है, क्योंकि मनुष्य गोपक्रान्तिकोंके चतुर्थ भागप्रमाण पर्याप्त द्रव्यसे उसके ही तीन चतुर्थ भागोंका अपवर्तन करने पर तीन रूप उपलब्ध होते हैं।
मनुष्यिनियोंसे सर्वार्थसिद्धिविमानवासी देव संख्यातगुणे हैं ॥ ४ ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है । कोई आचार्य सात रूप, कोई
१ थोवा गब्भयमणुया तत्ती इत्थीओ तिघणगुणियाओ । बायरते उक्काया तासिमसंखेज्ज पज्जसा ।। पं.सं. २, ६५.
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