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- महादंडओ एत्तो सब्वजीवेसु महादंडओ कादब्वो भवदि ॥ १ ॥
समत्तेसु एक्कारसअणियोगद्दारेसु किमट्ठमेसो महादंडओ वोत्तुमाढत्तओ ? वुच्चदे-खुद्दाबंधस्स एक्कारसअणियोगद्दारणिवद्धस्स' चूलियं काऊण महादंडओ वुच्चदे। चूलिया णाम किं ? एक्कारसअणिोगद्दारेसु सूइदत्थस्स विसेसियूण परूवणा चूलिया। जदि एवं तो णेसो महादंड ओ चूलिया, अप्पाबहुगणिओगद्दारसूइदत्थं मोत्तूणण्णत्थ वुत्तत्थाणमपरूवणादो त्ति वुत्ते बुच्चदे- ण च एसो णियमो अस्थि सव्वाणिओगद्दारसूइदत्थाणं विसेसपरूविया चेव चूलिया त्ति, किंतु एक्केण दोहि सव्वेहि वा अणिओगद्दारहि सूइदत्थाणं विसेसपरूवणा चूलिया णाम । तेणेसो महादंडओ चूलिया चेव,
इससे आगे सर्व जीवोंमें महादण्डक करना योग्य है ॥ १॥
शंका-ग्यारह अनुयोगद्वारोंके समाप्त होनेपर इस महादण्डकको कहनेका प्रारम्भ किसलिये किया जाता है ? ।
समाधान -उपर्युक्त शंकाका उत्तर देते हैं- ग्यारह अनुयोगद्वारों में निबद्ध क्षुद्रबन्धकी चूलिका करके महादण्डक कहते हैं ।
शंका-चूलिका किसे कहते हैं ?
समाधान-ग्यारह अनुयोगद्वारोंसे सूचित अर्थकी विशेषता कर प्ररूपणा करना चूलिका कही जाती है ।
शंका-यदि ऐसा है तो यह महादण्डक चूलिका नहीं कहा जा सकता, क्योंकि, यह अल्पबहुत्वानुयोगद्वारसे सूचित अर्थको छोड़कर अन्य अनुयोगद्वारोंमें कहे गये अर्थोका अप्ररूपक है ?
समाधान--सर्व अनुयोगद्वारोंसे सूचित अर्थोकी विशेष प्ररूपणा करनेवाली ही चूलिका हो यह कोई नियम नहीं है, किन्तु एक दो अथवा सब अनुयोगद्वारोंसे सूचित अर्थोकी विशेष प्ररूपणा करना चूलिका है। इसलिये यह महादण्डक चूलिका
१ प्रतिषु ' -अणियोगद्दारे णिबद्धस्स'; मप्रतो' अणियोगद्दारणिबंधस्स ' इति पाठः ।
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