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________________ . ५६४ • छक्खंडागमे खुद्दाबंधी (२, ११, १६८. सव्वत्थोवा सामाइयच्छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदस्स जहणिया चरित्तलद्धी ॥ १६८ ॥ एदं सचजहणं सामाइयच्छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजमस्स लट्ठिाणं कस्स होदि ? मिच्छत्तं पडिवज्जमाणसंजदस्स चरिमसमए । एदं सव्वजहणं पडिवादट्ठाणमादि कादून छवड्डिक्कमेण असंखेज्जलोगमेत्तेसु सामाइयच्छेदोवट्ठावणलद्धिट्ठाणेसु गदेसु तदो परिहारसुद्धिसंजदस्स पडिवादजहण्णलद्धिट्ठाणेण समाणं सामाइय-छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजमलद्धिट्ठाणं होदि । तदो दोण्हं संजमाणं ठाणाणि छबड्डीए णिरंतरमसंखेज्जलोगमेत्ताणि संजमलद्धिट्ठाणाणि गंतूण परिहारसुद्धिसंजमलद्धिट्ठाणमुक्कस्सं होदि । तदो तेसु तत्थेव थक्केसु पुणो उवरि णिरंतरछवड्डिकमेण असंखेजलोगमेत्ताणि सामाइयच्छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजमलद्धिद्वाणाणि गच्छंति । तदो असंखेज्जलोगमेत्ताणि छट्ठाणाणि अंतरिदूण सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजमस्स जहणं पडिवादलद्धिट्ठाणं होदि । तदो अणंतगुणाए बड्डीए सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजमलद्धिट्ठाणाणि अंतोमुहुत्तं गंतूण थकंति । किमट्टमेदाणि अतोमुहुत्त सामायिक-छेदोपस्थापनशुद्धिसंयतकी जघन्य चरित्रलब्धि सबमें स्तोक है ॥१६८॥ शंका-सामायिक छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयमका यह सर्वजघन्य लब्धिस्थान किसके होता है ? समाधान-यह स्थान मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले संयतके अन्तिम समयमें होता है। इस सर्वजघन्य प्रतिपातस्थानको आदि करके षड्वृद्धिक्रमसे असंख्यात लोकमात्र सामायिक छेदोपस्थापनालाब्धस्थानों के व्यतीत होनेपर पश्चात् परिहारशुद्धिसंयतके प्रतिपात जघन्य लब्धिस्थानके समान सामायिक-छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयम लब्धिस्थान होता है । तत्पश्चात् दोनों संयमोंके स्थान छह वृद्धियोंके क्रमसे निरन्तर असंख्यात लोकमात्र संयमलब्धिस्थानोंको विताकर उत्कृष्ट परिहारशुद्धिसंयमलब्धिस्थान होता है। पश्चात् उनके वहींपर विश्रान्त होनेपर पुनः आगे निरन्तर छह वृद्धियोंके क्रमसे असंख्यात लोकमात्र सामायिकछेदोपस्थापनाशुद्धिसंयमलब्धिस्थान जाते हैं । तत्पश्चात् असंख्यातलोकमात्र छह स्थानोंका अन्तर करके सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयमका जघन्य प्रतिपात लब्धिस्थान होता है । पश्चात् अनन्तगुणित वृद्धिसे सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयमलब्धिस्थान अन्तर्मुहूर्त जाकर थक जाते हैं । शंका-ये सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयमलब्धिस्थान अन्तर्मुहूर्तमात्र किस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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