SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 596
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, ११, १६७. अप्पाबहुगाणुगमे संजममगणा को गुणगारो ? संखेज्जा समया । संजदा विसेसाहिया ॥ १६४ ॥ सुगमं । संजदासंजदा असंखेज्जगुणा ॥ १६५ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । णेव संजदा व असंजदा व संजदासंजदा अणंतगुणा ॥१६६॥ को गुणगारो ? पुव्यं परूविदो । असंजदा अणंतगुणा ॥ १६७ ॥ सुगमं । संजमट्टिदैजीवाणमप्पाबहुअं भणिय तिव्य-मंद-मज्झिमभेएण द्विदसंजमस्स अप्पाबहुगपरूवणहमुत्तरसुत्तं भणदि गुणकार क्या है ? संख्यात समय है। उक्त दोनों जीवोंसे संयत जीव विशेष अधिक हैं ॥ १६४ ॥ यह सूत्र सुगम है। संयतोंसे संयतासंयत असंख्यातगुणे हैं ॥ १६५ ॥ गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है। संयतासंयतोंसे न संयत न असंयत न संयतासंयत ऐसे सिद्ध जीव अनन्तगुणे हैं ॥१६६ ॥ गुणकार क्या है ? पूर्वप्ररूपित (अभव्यसिद्धिक जीवोंसे अनन्तगुणा) गुणकार है। उनसे असंयत जीव अनन्तगुणे हैं ॥ १६७ ॥ यह सूत्र सुगम है। संयममें स्थित जीवोंके अल्पबहुत्वको कहकर तीव, मन्द घ मध्यम भेदसे स्थित संयमके अल्प बहुत्वके निरूपणार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं १ अ-आप्रत्योः । संजमम्हि ६८ ठिदि- ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy