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________________ २, ११, १५८. ] अप्पाचहुगाणुगमे संजममग्गणा गुणगारो अभवसिद्धिएहि अनंतगुणो सिद्धाणमसंखेज्जदिभागो । मदिअण्णाणी सुदअण्णाणी दो वि तुल्ला अनंतगुणा ॥ १५५ ॥ गुणगारो अभवसिद्धिएहिंतो सिद्धेहिंतो सब्बजीवपढमवग्गमूलादो वि अनंतगुणो । कुदो ? केवलणाणीहि ओवविदे देसूणसच्चजीवरासिपमाणत्तादो । संजमाणुवादेण सव्वत्थोवा संजदा ॥ १५६ ॥ कुदो ! संखेज्जत्तादो । संजदासंजदा असंखेज्जगुणा ॥ १५७ ॥ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । कुदो ? संखेज्जरूवगुणिद असंखेज्जावलि ओवट्टिदपलिदोवम पमाणत्तादो । व संजदा णेव असंजदा णेव संजदासंजदा अनंतगुणा ॥ १५८ ॥ गुणकार अभव्यसिद्धिक जीवोंसे अनन्तगुणा और सिद्धों के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । [ ५६१ केवलज्ञानियोंसे मतिअज्ञानी और श्रुतअज्ञामी दोनों ही तुल्य अनन्तगुणे हैं ॥ १५५ ॥ गुणकार अभव्यसिद्धिकोंसे, सिद्धोंसे और सर्व जीवोंके प्रथम वर्गमूल से भी अनन्तगुणा है, क्योंकि, वह केवलज्ञानियोंसे अपवर्तित कुछ कम सर्व जीवराशिप्रमाण है । संयममार्गणानुसार संयत जीव सबमें स्तोक हैं ॥ १५६ ॥ क्योंकि, वे संख्यात हैं । संयतों से संयतासंयत असंख्यातगुणे हैं ॥ १५७ ॥ गुणकार पल्योपमके असंख्यातवें भाग असंख्यात पल्योपम प्रथम वर्गमूल है, क्योंकि, वह संख्यात रूपोंसे गुणित असंख्यात आवलियोंसे अपवर्तित पल्योपमप्रमाण है । संयतासंयत जीवोंसे न संयत न असंयत न संयतासंयत ऐसे सिद्ध जीव अनन्तगुणे हैं ॥ १५८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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