________________
५६० छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ११, १५२. ओहिणाणी असंखेज्जगुणा ॥ १५१ ॥
गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि। कुदो ? संखेज्जरूवगुणिदआवलियाए असंखेज्जदिभागेणावट्टिदपलिदोवम पमाणत्तादो।
आभिणिबोहिय-सुदणाणी दो वि तुल्ला विसेसाहिया ॥१५२॥
को विसेसो ? ओहिणाणीणं असंखेज्जदिभागो ओहिणाणविरहिदतिरिक्ख-मणुससम्माइहिरासी ।
विभंगणाणी असंखेज्जगुणा ॥ १५३ ॥
गुणगारो जगपदरस्स असंखेज्जदिभागो असंखज्जाओ सेडीओ। कुदो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तपदरंगुलेहि ओवट्टिदजगपदरपमाणत्तादो ।
केवलणाणी अणंतगुणा ॥ १५४ ॥
मनःपर्ययज्ञानियोंसे अवधिज्ञानी असंख्यातगुणे हैं ॥ १५१ ॥
गुणकार पल्योपमके असंख्यातवें भाग असंख्यात पल्योपम प्रथम वर्गमूल है, क्योंकि, यह संख्यात रूपोंसे गुणित वलीके असंख्यातवें भागसे अपवर्तित पल्योपमप्रमाण है।
____ अवधिज्ञानियोंसे आभिनियोधिकज्ञानी और श्रुतज्ञानी दोनों ही तुल्य विशेष अधिक हैं ॥ १५२॥
विशेष क्या है ? अवधिज्ञानियोंके असंख्यातवें भाग अवधिज्ञानसे रहित तियेच व मनुष्य सम्यग्दृष्टिराशि विशेष है ।
मात-श्रुतज्ञानियास विभंगज्ञानी असंख्यातगुणे हैं ॥ १५३ ॥ - गुणकार जगप्रतरके असंख्यातवें भाग असंख्यात जगश्रेणी है, क्योंकि, वह पल्यापमके असंख्यातवें भागमात्र प्रतरांगुलोंसे अपवर्तित जगप्रतरप्रमाण है।
विभंगज्ञानियोंसे केवलज्ञानी अनन्तगुणे हैं ॥ १५४ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org