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________________ ५५४ ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ११, १२६. कम्मइयकायजोगी अणंतगुणा ॥ १२६ ॥ को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहिंतो सिद्धेहिंतो सधजीवाणं पढमवग्गमलादो वि अणंतगुणो | कुदो ? अंतोमुहुत्तगुणिदअजोगिरासिपमाणेणोवट्टिदसव्यजीवरासिमेत्तत्तादो । ओरालियमिस्सकायजोगी असंखेज्जगुणा ॥ १२७ ॥ को गुणगारो ? अंतोमुहुत्तं । ओरालियकायजोगी संखेज्जगुणा ॥ १२८ ॥ सुगमं । कायजोगी विसेसाहिया ॥ १२९ ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? सेसकायजोगिमेत्तो । वेदाणुवादेण सव्वत्थोवा पुरिसवेदा ॥ १३०॥ कुदो ? संखेज्जपदरंगुलोवाट्टिदजगपदरप्पमाणत्तादो। इथिवेदा संखेज्जगुणा ॥ १३१ ॥ अयोगियोंसे कार्मणकाययोगी अनन्तगुणे हैं ॥ १२६ ॥ गुणकार कितना है ? अभव्यसिद्धिकों, सिद्धों और सर्व जीवोंके प्रथम वर्गमूलसे भी अनन्तगुणा है, क्योंकि, वह अन्तर्मुहूर्तसे गुणित अयोगिराशिप्रमाणसे अपवर्तित सर्व जीवराशि कार्मणकाययोगियोंसे औदारिकमिश्रकाययोगी असंख्यातगुणे हैं ॥ १२७ ॥ गुणकार कितना है ? गुणकार अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है । औदारिकमिश्रकाययोगियोंसे औदारिककाययोगी संख्यातगुणे हैं ॥ १२८ ॥ यह सूत्र सुगम है। औदारिककाययोगियोंसे काययोगी विशेष अधिक हैं ॥ १२९ ॥ विशेष कितना है ? शेष काययोगिप्रमाण है। वेदमार्गणाके अनुसार पुरुषवेदी सबमें स्तोक हैं ॥ १३०॥ क्योंकि, वे संख्यात प्रतरांगुलोंसे अपवर्तित जगप्रतरप्रमाण हैं । पुरुषवेदियोंसे स्त्रीवेदी संख्यातगुणे हैं ॥ १३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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