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________________ २, ११, १३५. ] अप्पाबहुगाणुगमे वैदमागणी [५५५ को गुणगारो ? संखेज्जा समया । अवगदवेदा अणंतगुणा ॥ १३२ ॥ को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो । णवंसयवेदा अणंतगुणा ॥ १३३ ॥ को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहितो सिद्धेहितो सव्वजीवाणं पढमवग्गालादो अणंतगुणो । वेदमग्गणाए अण्णेण पयारेण अप्पाबहुअपरूवणमुत्तरसुत्तं भणदि पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु पयदं। सव्वत्थोवा सणिणqसयवेद. गब्भोवक्कंतिया ॥ १३४ ॥ पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तपदरंगुलेहि जगपदरम्मि भागे हिदे सण्णिणqसयवेदगठभोवक्कंतिया जेण हॉति तेण थोवा । सण्णिपुरिसवेदा गम्भोवक्कंतिया संखेज्जगुणा ॥ १३५ ॥ गुणकार कितना है ? संख्यात समयप्रमाण है। स्त्रीवेदियोंसे अपगतवेदी अनन्तगुणे हैं ॥१३२ ॥ गुणकार कितना है ? अभव्यसिद्धिक जीवोंसे अनन्तगुणा है । अपगतवेदियोंसे नपुंसकवेदी अनन्तगुणे हैं ॥ १३३ ।। गुणकार कितना है ? अभव्यसिद्धिकों, सिद्धों और सर्व जीवोंके प्रथम वर्गमूलसे अनन्तगुणा है। वेदमार्गणा अन्य प्रकार से अल्पबहुत्वके निरूपणार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं यहां पंचेद्रिय तिर्यग्योनि जीवोंका अधिकार है। संज्ञी नपुंसकवेदी ग - पक्रान्तिक जीव सबमें स्तोक हैं ॥ १३४।। चूंकि पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र प्रतरांगुलोंका जगप्रतरमें भाग देनेपर संक्षी नपुंसकवेदी गर्भोपक्रान्तिक जीवोंका प्रमाण होता है, अत एव वे स्तोक हैं। संज्ञी नपुंसक गर्भोपक्रान्तिकोंसे संज्ञी पुरुषवेदी ग पक्रान्तिक जीव संख्यातगुणे हैं ॥ १३५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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