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________________ ५५२] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ११, ११५. मोसमणजोगी संखेज्जगुणा ॥ ११५॥ कुदो ? सच्चमणजोगअद्धादो मोसमणजोगअद्धाए संखेज्जगुणत्तादो सच्चमणजोगपरिणमणवारेहिंतो मोसमणजोगपरिणमणवाराणं संखेज्जगुणत्तादो वा । सच्च-मोसमणजोगी संखेज्जगुणा ॥ ११६ ॥ एत्थ पुव्वं व दोहि पयारेहि संखेज्जगुणत्तस्स कारणं वत्तव्यं । असच्च-मोसमणजोगी संखेज्जगुणा ॥ ११७ ॥ एत्थ वि पुबिल्लं दुविहकारणं वत्तव्यं । मणजोगी विसेसाहिया ॥ ११८ ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? सच्च-मोस सच्चमोसमणजोगिमेत्तो विसेसो । सच्चवचिजोगी संखेज्जगुणा ॥ ११९ ॥ कारणं ? मणजोगिअद्धादो वचिजोगिअद्धाए संखेज्जगुणत्तादो मणजोगवारेहितो सच्चवचिजोगवाराणं संखेज्जगुणत्तादो वा । सत्यमनोयोगियोंसे मृषामनोयोगी संख्यातगुणे हैं ॥ ११५ ॥ क्योंकि, सत्यमनोयोगके कालकी अपेक्षा मृषामनोयोगका काल संख्यातगुणा है, अथवा सत्यमनोयोगके परिणमनवारोंकी अपेक्षा मृषामनोयोगके परिणमनवार संख्यातगुणे हैं। मृषामनोयोगियोंसे सत्य-मृषामनोयोगी संख्यातगुणे हैं ।। ११६ ।। यहां पूर्वके समान दोनों प्रकारोंसे संख्यातगुणत्वका कारण कहना चाहिये। सत्य मृषामनोयोगियोंसे असत्य मृषामनोयोगी संख्यातगुणे हैं ॥ ११७ ॥ यहां भी पूर्वोक्त दोनों प्रकारका कारण कहना चाहिये । असत्य-मृषामनोयोगियोंसे मनोयोगी विशेष अधिक हैं ॥ ११८ ॥ विशेष कितना है ? सत्य, मृषा और सत्य मृषा मनोयोगियोंके बराबर है। मनोयोगियोंसे सत्यवचनयोगी संख्यातगुणे हैं । ११९ ॥ क्योंकि, मनोयोगिकालसे वचनयोगिकाल संख्यातगुणा है, अथवा मनोयोग पारोंसे सत्यवचनयोगवार संख्यातगुणे हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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