________________
२, ११, ८१. ] अप्पाबहुगाणुगमे कायमग्गणा
[ ५४३ भागुवलंभादो।
बादरणिगोदजीवा णिगोदपदिट्ठिदा पज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ८० ॥
वादरणिगोदजीवणिदेसो किमढे कदो, बादरणिगोदपदिद्विदा चि वत्तव्बं ? ण, बादरणिगोदपदिट्ठिदाणं णिगोदजीवाधाराण सयं पत्तेयसरीराणमुवयारबलेण णिगोदजीवसण्णा एत्थ होदु त्ति जाणावणटुं कदो । गुणगारो आवलियाए असंखज्जदिभागो। कुदो ? बादरणिगोदपदिद्विदअवहारकालेण बादरवणप्फदिपत्तेयसरीरअवहारकाले भागे हिदे अवलियाए असंखेज्जदिभागुवलंभादो ।
बादरपुढविकाइयपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ८१ ॥ गुणगारो आवलियाए असंखेज्जदिमागो । कारणं पुव्वं व वत्तव्यं ।
करनेपर पल्योपमका असंख्यातवां भाग उपलब्ध होता है ।
वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्तोंसे चादर निगोदजीव निगोद-प्रतिष्ठित पर्याप्त असंख्यातगुणे हैं ।। ८० ।।
शंका- 'बादर निगोद जीव' का निर्देश किस लिये किया, बादर-निगोइप्रतिष्टित ' इतना ही कहना चाहिये ?
समाधान नहीं, क्योंकि, निगोदजीवोंके आधारभूत व स्वयं प्रत्येकशरीर ऐसे बादर निगोदजीवोंसे प्रतिष्ठित जीवोंको यहां उपचारके बलसे 'निगोदजीव' संज्ञा हो इस बातके शापनार्थ 'बादर निगोदजीच' का निर्देश किया है। गुणकार यहां आवलीका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, बादर-निगोद-प्रतिष्ठित जीवोंके अवहारकालसे बादरवनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंके अवहारकालको भाजित करनेपर आवलीका असंख्यातवां भाग उपलब्ध होता है।
___ बादर निगोदजीव निगोदप्रतिष्ठित पर्याप्तोंसे बादर पृथिवकिायिक पर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ८१ ॥
गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है । कारण पहिलेके समान कहना चाहिये।
१ प्रतिषु ' जीवाधारणं' इति पाठः ।
vate & Personal Use Only
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
www.jainelibrary