SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 577
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५४ ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ११, ८२. बादरआउकाइयपज्जत्ता असंखेज्जगुणा॥ ८२ ॥ गुणगारो आवलियाए असंखेज्जदिभागो। कारणं पुज्यं व वत्तव्यं । बादरवाउकाइयपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ८३ ॥ गुणगारो असंखेज्जाओ सेडीओ पदरंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताओ । हेहिमरासिणा उवरिमरासिमोवट्टिय सव्वत्थ गुणगारो उप्पाएदयो । बादरतेउअपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ८४ ॥ गुणगारो असंखेज्जा लोगा। गुणगारद्धच्छेदणयसलागाओ सागरोवर्म' पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेणूणयं ।। बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरअपजत्ता असंखेजगुणा ॥८५॥ गुणगारपमाणमसंखेज्जा लोगा। गुणगारद्धच्छेदणयसलागाओ पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तोंसे बादर अप्कायिक पर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ८२ ॥ गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है । कारण पहिलेके समान कहना चाहिये। बादर अप्कायिक पर्याप्तोंसे बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ।। ८३ ॥ यहां गुणकार प्रतरांगुलके असंख्यातवें भागमात्र असंख्यात जगश्रेणी है। अधस्तन राशिसे उपरिम राशिका अपवर्तन कर सर्वत्र गुणकार उत्पन्न करना चाहिये । बादर वायुकायिक पर्याप्तोंसे बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ८४ ॥ यहां गुणकार असंख्यात लोक है। गुणकारकी अर्द्धच्छेदशलाकायें पल्योपमके असंख्यातवें भागसे हीन सागरोपमप्रमाण हैं। बादर तेजस्कायिक अपर्याप्तोंसे बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ८५॥ गुणकारका प्रमाण असंख्यात लोक है। गुणकारकी अर्द्धच्छेदशलाकायें पत्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । १ अप्रतौ ' सागरोवमं' इति पाठः नास्ति । Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy