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छक्खंडागमे खुदाबंधो
पुणो अण्णेण पयारेण अप्पाहुगपरूवणमुत्तरमुत्तं भणदिसव्वत्थोवा बादरतेउकाइयपज्जत्ता ॥ ७६ ॥ कुदो ? असंखेज्जपदरावलियपमाणत्तादो । तसकाइयपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ७७ ॥
एत्थ गुणगारो जगपदरस्स असंखेज्जदिभागो । कुदो ? असंखेज्जपदरंगुले हि ओट्टिदजगपदरप्पमाणत्तादो ।
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तसकाइयअपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ७८ ॥
गुणगारो आवलिया असंखेज्जदिभागो । कुदो ? तस अपज्जत अवहारकालेण तमुपज्जत्त अवहारकाले भागे हिदे आवलियाए असंखेज्जदिभागोवलंभादो । वणफदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ७९ ॥
गुणगारो पलिदोवस्त असंखेज्जदिभागो । कुदो ? बादरवणष्फदिपत्तेयसरीरपज्जत अवहारकालेन तसकाइयअवहारकाले भागे हिदे पलिदोवमस्स असंखेज्जदि
[ २, ११, ७६.
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फिर भी अन्य प्रकार से अल्पबहुत्व के निरूपणार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
बादर तेजस्कायिक जीव सबमें स्तोक हैं ।। ७६ ।।
क्योंकि, वे असंख्यात प्रतरावलीप्रमाण हैं ।
बादर तेजस्कायिकोंसे त्रसकायिक पर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ।। ७७ ।। यहां गुणकार जगप्रतरका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि वह असंख्यात प्रतरांगुलों से अपवर्तित जगप्रतरप्रमाण है ।
कायिक पर्याप्तोंसे सकायिक अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ७८ ॥
यहां गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, त्रस अपर्याप्त जीवोंके अवहारकाल से त्रस पर्याप्त जीवोंके अवहारकालको भाजित करनेपर आवलीका असंख्यातवां भाग लब्ध होता है ।
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कायिक अपर्याप्तोंसे वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीव असंख्यात - गुण हैं ॥ ७९ ॥
यहां गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, बादरवनस्पतिकाधिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त जीवोंके अवहारकालसे असकायिक जीवोंके अवहारकालको भाजित
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