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२, ११, ७५.]
अप्पाबहुगाणुगमे कायमगणा वणप्फदिणामकम्मोदइल्लत्तणेण सव्वेसिमेगत्तमत्थि त्ति भणिदे होदु तेण एगतं, किंतु तमेत्थ अविवक्खियं, आहार-अणाहारत्तं चैव विवक्खियं । तेण वणप्फदिकाइएसु बादरणिगोदपदिहिदापदिद्विदा ण गहिदा । वणप्फदिकाइयाणमुवरि । णिगोदा विसेसाहिया' त्ति भणिदे बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरेहि बादरणिगोदपदिढिदेहि य विसेसाहिया । बादरणिगोदपदिद्विदापदिहिदाणं कधं णिगोदववएसो ? ण, आहारे आहेओवयारादो तेसिं णिगोदत्तसिद्धीदो। वणफदिणामकम्मोदइल्लाणं सव्वेसि वणप्फदिसण्णा सुत्ते दिस्सदि । बादरणिगोदपदिद्विदअपदिद्विदाणमेत्थ सुत्ते वणप्फदिसण्णा किण्ण णिहिट्ठा ? गोदमो एत्थ पुच्छेयव्यो। अम्हेहि गोदमो बादरणिगोदपदिद्विदाणं वणप्फदिसणं णेच्छदि त्ति तस्स अहिप्पाओ कहिओ।
शका-वनस्पति नामकर्मके उदयसे संयुक्त होने की अपेक्षा सोंके एकता है ?
समाधान-वनस्पति नामकर्मोदयकी अपेक्षा उससे एकता रहे, किन्तु उसकी यहां विवक्षा नहीं है। यहां आधारत्व और अनाधारत्वकी ही विवक्षा है। इस कारण वनस्पतिकायिक जीवों में बादर निगोदासे प्रतिष्ठित अप्रतिष्ठित जीवोका ग्रहण नहीं किया गया।
वनस्पतिकायिक जीवोंके ऊपर निगोदजीव विशेष अधिक हैं' ऐसा कहनेपर बादर निगोद जीवोंसे प्रतिष्टित बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंसे विशेष अधिक हैं (ऐसा समझना चाहिये )। .
शंका-बादर निगोदजीवोंसे प्रतिष्ठित अप्रतिष्टित जीवोंके 'निगोद ' संज्ञा कैसे घटित होती है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, आधारमें आधेयका उपचार करनेसे उनके निगोदत्य सिद्ध होता है।
शंका-वनस्पति नामकर्मके उदयसे संयुक्त सब जीवोंके 'वनस्पति' संज्ञा सूत्र में देखी जाती है। बादर निगोदजीवोसे प्रतिष्ठित अप्रतिष्ठित जीवोंके यहां सूत्रमें वनस्पति संज्ञा क्यों नहीं निर्दिष्ट की ?
समाधान -- इस शंकाका उत्तर गोतमसे पूछना चाहिये । हमने तो ' गौतम बादर निगोद जीवोंसे प्रतिष्ठित जीवोंके ' वनस्पति' संशा नहीं स्वीकार करते' इस प्रकार उनका अभिप्राय कहा है।
१ प्रतिषु मेत्त' इति पार
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